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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका ब्रात्योंकी जन्मभूमिका निश्चय किया जा सके। तथापि अथर्ववेदमें मागधोंका व्रात्योंके साथ निकट सम्बन्ध बतलाया है। अतः ब्रात्योंको मगधका वासी माना जाता है। तथा वैदिक साहित्यके उल्लेखोंके अनुसार ब्रात्य लोग न तो ब्राह्मणोंके क्रिया काण्डको मानते थे, न खेती और व्यापार करते थे। अतः न वे ब्राह्मण थे और न वैश्य । किन्तु योद्धा थे-धनुषवाण रखते थे।
मनुस्मृति (अ० १० ) में लिच्छवियोंको व्रात्य बतलाया है । सातवीं-छठी शताब्दी ईस्वीपूर्वमें विदेहके पड़ोसमें वैशाली गणतंत्र था-जो लिच्छवियोंका था । इनके गणका नाम वृजि या वजिगण था। ये लिच्छवि लोग क्षत्रिय थे और मगध देशके निकट बसते थे । अन्तिम जैन तीर्थङ्कर भगवान महावीरकी माता लिच्छवि गणतंत्रके प्रमुख जैन राजा चेटककी पुत्री थी। बुद्धने लिच्छवियों
और उनके वजिगणकी बड़ी प्रशंसा की है। महापरिनिब्वाण सुत्तसे पता चलता है कि उन वजियोंके अपने चैत्य थे और अपने अर्हत् थे। उन अहतों और चैत्योंके अनुयायी व्रात्य कहलाते थे। ( भा० इ० रू०. पृ० ३४६ का पाद टिप्पण)।
इस तरह व्रात्योंको मगधका वासी और लिच्छवियोंका ब्रात्य बतलानेसे तो ब्रात्य लोग क्षत्रिय और जैनों के पूर्वज प्रतीत होते हैं।
श्री का०प्र० जायसवालने ( मार्डन रिव्यु १९२६, पृ० ४६६) लिखा है-'लिच्छवि पाटलीपुत्रके 'अपोजिट' मुजफ्फरपुर जिले में राज्य करते थे। वे ब्रात्य अर्थात् अब्राह्मण क्षत्रिय कहलाते थे। वे गणतंत्र राज्यके स्वामी थे। उनके अपने पूजा स्थान थे, उनकी अवैदिक पूजाविधि थी, उनके अपने धार्मिक गुरु थे। वे जैनधर्म और बौद्धधर्मके आश्रदाता थे। उनमें महाबीर का जन्म हुआ। मनुने उन्हें पतित बतलाया है।'
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