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श्रीस्याद्वादानवद्य-विद्याविशारद-विद्वन्मणि-कवि-राजमल्लविरचितअध्यात्मकमलमार्तण्ड
[ सानुवाद ] प्रथम परिच्छेद
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मंगलाचरण और प्रतिज्ञा प्रणम्य भाव विशदं चिदात्मकं समस्त-तत्त्वार्थ-विदं स्वभावतः। प्रमाण-सिद्धं नय-युक्ति-संयुतं विमुक्त-दोषावरणं समन्ततः॥१॥ अनन्तधर्म समयं हयतीन्द्रियं कुवादिवादामहतस्वलक्षणम् । अवेऽपवर्गप्रणिधेतुमद्भुतं पदार्थतत्वं भवतापशान्तये ॥२॥
(युग्मम् ) अर्थ-जो स्वभावसे ही सर्वपदार्थोका ज्ञायक है. प्रमाणसे सिद्ध है. नय और युक्तिसे निर्णीत है, सर्व प्रकारके दोषों--रागद्वेषमोहादिकों-तथा ज्ञानावरणादि आवरणोंसे मुक्त है, अत्यन्त निर्मल है और चैतन्यस्वरूप है उस भावको-शुद्ध आत्मस्वभावरूप
___* 'अवेऽपवर्गस्य च हेतुमद्भुतं' इत्यपि पाटः
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