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________________ विषय ३४. आकाशद्रव्यकी अपने प्रदेशों, गुणों, पर्यायोंसे सिद्धि और उसके कार्य तथा धर्मपर्यायका कथन ७८ ३५. 'आकाश' द्रव्यकी द्रव्यपर्यायका कथन (६) काल-द्रव्यका निरूपण ७६ ( त्रु ) ७६. ३६. काल - द्रव्यका स्वरूप और उसके भेद ३७. निश्चयकाल - द्रव्यका स्वरूप ८३ ३८. कालद्रव्यकी शुद्ध द्रव्यपर्याय और उसका प्रमाण ८४ ८४ ३६. व्यवहारकालका लक्षण ४०. व्यवहारकालको निश्चयकालकी पर्याय कहनेका एकदेशीय मत ४१. कालद्रव्यको अस्तिकाय न होने और शेष द्रव्योंको अस्तिकाय होने का कथन ४. चतुर्थ - परिच्छेद ४. उक्त विषयका स्पष्टीकरण ५. पुनः उदाहरणपूर्वक स्पष्टोकरण ६ कर्मबन्धव्यवस्था तथा द्रव्यास्त्रव और द्रव्यबन्धका लक्षण ७. द्रव्यबन्धके भेद और उनके कारण ८. योग और कषायके एक साथ होनेका नियम Jain Educationa International 蚵 Ε १. जीवके वैभाविक भावों का सामान्यस्वरूप और उनका भावास्रव तथा भावबन्धरूप होनेका निर्देश प २. वैभाविकभावोंके भेद और उनका स्वरूप ३. वैभाविकभावोंके भावास्रव और भावबन्धरूप होने में शंका-समाधान For Personal and Private Use Only ८५. ८६ ६.१ ६३ w m ६३ x w z ६७ www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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