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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड
कविवरने कुल कितने ग्रन्थांकी रचना की यह तो किसीको मालूम नहीं; परन्तु अभी तक आपकी मौलिक कृतियोंके रूपमें प्रस्तुत ग्रन्थ के लावा चार ग्रन्थोंका ही और पता चला है, जिनके नाम हैं-१ जम्बूस्वामिचरित, २ लाटीसंहिता, ३ छन्दोविद्या ( पिङ्गल ), और ४ पञ्चाध्यायी । इनमें से छन्दोविद्याको छोड़कर शेष सब ग्रन्थ प्रकाशित भी हो चुके हैं।
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एक छठा ग्रन्थ आपका और भी बतलाया जाता है और वह है 'समयसार कलशकी हिन्दी टीका' जिसे ब्र० शीतलप्रसादजीने श्राजसे कोई १४ वर्ष पूर्व सूरत से इस रूपमें प्रकाशित कराया है कि पहले अमृतचन्द्र श्राचार्यका संस्कृत कलश तदनन्तर 'खंडान्वय- सहित अर्थ' के रूपमें यह टीका, इसके बाद अपना 'भावार्थ' और फिर पं० बनारसीदासजीके समयrace' के हिन्दी पद्य। इस टीकाकी भाषा पुरानी जयपुरी (ढुंढारी ) अथवा मारवाड़ी गुजराती जैसी हिन्दी है, टीकाके आरम्भ तथा अन्तमें कोई मंगलात्मक अथवा समाप्ति सूचक हिन्दी पद्य नहीं है, जिसकी पिंगल में
ये हुए हिन्दी पद्योंके साथ तुलना की जाती, और न टीकाकी भाषाके अनुरूप ऐसी कोई सन्धि ही देखने में आती है, जिससे टीकाकारके नामादिकका कुछ विशेष परिचय मिलता । कविवर प० बनारसीदासजीने अपने हिन्दी समयसार नाटक में अमृतचन्द्रीय संस्कृत नाटककी एक बालबोध सुगम टीकाका उल्लेख किया है और उसे पांडे ( पंडित ) राजमल्लजी कृत लिखा है । साथ ही, पांडे राजमल्लजीको समयसार नाटकका मर्मी बतलाते हुए, यह भी प्रकट किया है कि उनकी इस टीका परसे रा नगरमें बोध वचनिका फैली, काल पाकर अध्यात्म-शैली अथवा मंडली जुड़ी और उस मंडलीके पं० रूपचन्दजी आदि पाँच प्रमुख विद्वानांकी प्रेरणाको पाकर उन्होंने उक्त राजमल्लीय टीका के आधारपर अपनी यह हिन्दी छन्दोबद्ध रचना की है और उसे ग्राश्विन सुदि १३ सं० १६६३ को रविवार के दिन पूरा किया है । इस कथन के कुछ पद्य इस प्रकार हैं:
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