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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड है कि उससे दर्शनमोह-तत्त्वज्ञान-विषयक भ्रान्ति-दूर होकर नियमसे सदृष्टि ( सम्यग्दृष्टि ) की प्राप्ति होती है। और यह सद्दृष्टि ही सारे श्रात्म-विकास अथवा मोक्ष-प्राप्तिकी मूल है। अतः इस परसे ग्रन्थकी उपयोगिता और भी स्पष्ट होजाती है। __इस ग्रन्थके आदि और अन्तमें मंगलाचरणादिरूपसे किसी प्राचार्यविशेषका कोई स्मरण नहीं किया गया। आदिम और अन्तिम दोनों पद्योंमें 'समयसार-कलश' के रचयिता श्रीअमृतचन्द्रसूरिका अनुसरण करते हुए शुद्धचिद्रूप भावको नमस्कार किया गया है और ग्रन्थका कर्ता वास्तवमें शब्दों तथा अर्थोको बतलाकर अपनेको उसके कर्तृत्वसे अलग किया है। जैसा कि दोनों ग्रन्थोंके निम्न पद्योंसे प्रकट है :"नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते। चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे ।। (आदिम) "स्वशक्ति-संसूचितवस्तुतत्त्वैर्व्याख्या कृतेयं समयस्य शब्दैः। स्वरूपगुप्तस्य न किञ्चिदस्ति कर्तव्यमेवामृतचन्द्रसूरेः।।(अन्तिम) --समयसारकलश "प्रणम्य भावं विशदं चिदात्मकं समस्ततत्वार्थविदं स्वभावतः । प्रमाण सिद्धं नययुक्तिसंयुतं विमुक्तदोषावरणं समन्ततः। (प्रादि०) - "अर्थाश्चाद्यवसानवर्जतनवः सिद्धाः स्वयं मानतस्तल्लक्ष्मप्रतिपादकाश्च शन्दा निष्पन्नरूपाः किल । भो विज्ञाः परमार्थतः कृति रियं शब्दार्थयोश्च स्वतो नव्यं काव्यमिदं कृतं न विदुषा तद्राजमल्लेन हि ॥ (अन्तिम) _ -अध्यात्मकमलमार्तण्ड - हाँ, १० वे पद्यमें गौतम (गणधर), वक्रग्रीव और अमृतचन्द्रसूरिका नामोल्लेख : जरूर किया है और उन्हें जिनवर-कथित जीवाऽजीवादि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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