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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड भावार्थ-'मोक्ष' के दो भेद हैं-(१) भावमोक्ष और (२) द्रव्यमोक्ष । इनका स्वरूप स्वयं ग्रन्थकार आगे कहते हैं। भावमोक्षका स्वरूपसर्वोत्कृष्टविशुद्धिर्वोधमती कृत्स्नकर्मलयहेतुः । जेयः स भाव-मोक्षः कर्मक्षयजा विशुद्धिरथ च स्यात्।।१।। अर्थ-सब कर्मों के क्षय( नाश )को करनेवाली और स्वयं कर्मविनाशसे होनेवाली सम्यग्ज्ञानविशिष्ट--अनन्तज्ञानस्वरूप आत्माकी परमोच्च विशुद्धि-पूर्ण निर्मलताको भावमोक्ष जानना चाहिये। भावार्थ-भावमोक्ष दो प्रकारका है-(१) अपर-भाव-मोक्ष और (२) पर-भाव-मोक्ष। १. अपर-भाव-मोक्ष-ज्ञानावरण, दर्शनावरण,मोहनीय और अन्तराय इन चार घातिया कर्मोके क्षयसे तेरहवे और चौदहवें गुणस्थानवर्ती सयोगकेवली और अयोगकेवली-जिनके आत्मामें जो विशुद्धि-निर्मलता होती है उसे अपरभावमोक्ष कहते हैं। और यह ही विशुद्धि सम्पूर्ण कर्मों के क्षयमें कारण होती २. पर-भाव-मोक्ष-अघातिया--वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार-कर्मों के भी नाश हो जानेपर आत्मामें जो सर्वोच्च विशुद्धि- पूर्ण निर्मलता-सिद्ध अवस्था प्राप्त होती है उसे पर-भाव-मोक्ष कहते हैं । यद्यपि अरहंत और सिद्ध भगवानके अनन्तज्ञानादि समान होनेसे आत्म-निर्मलता भी एक जैसी है तथापि चार कर्मों और आठकर्मोके नाशकी अपेक्षासे उस निर्मलतामें औपाधिक भेद है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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