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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला क्रिया होनेपर दूसरे भागमें भी क्रिया (कंप) होती है । उसी प्रकार लोकाकाशके किसी एक प्रदेशपर स्थित कालाणुके द्वारा लोकाकाशके उस प्रदेशमें परिणमन होनेपर समस्त आकाशके प्रदेशोंमें भी परिणमन हो जाता है; क्योंकि वह अखण्ड द्रव्य है।
शंका-यदि ऐसा है, तो एक कालाणुसे ही सब द्रव्योंमें परिणमन हो जायगा ? फिर उन्हें असंख्यात माननेकी भी क्या आवश्यकता ?
समाधान नहीं, अगर सभी द्रव्य अखण्ड ही होते-खण्डद्रव्य न होते तो एक कालाणुके द्वारा ही सब द्रव्योंका परिणमन हो जाता । पर यह बात नहीं है। धर्म, अधर्म और आकाश इन अखण्ड द्रव्योंके अलावा जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य खण्ड द्रव्य हैं। अतः इन खण्ड द्रव्योंको परिणमन कराने के लिये असंख्यात कालाणुओंका मानना परमावश्यक है। ___ शंका--यदि खण्ड द्रव्योंको परिणमन कराने के लिये कालाणुओंका असंख्यात मानना आवश्यक है, तो खण्डद्रव्य तो दोनों ही अनन्त अनन्त हैं फिर असंख्यात कालाणुओंसे अनन्तसंख्यक जीवों और अनन्तसंख्यक पुद्गलोंका परिणमन कैसे हो सकेगा ? उन्हें भी अनन्त ही मानना चाहिये ।
समाधान-नहीं, ऊपर बतला आये हैं कि अनन्त जीव और अनन्त पुद्गल ये दोनों अनन्तराशियां असंख्यातप्रदेशमात्र लोकाकाशमें ही अवस्थित हैं। क्योंकि जीव और पुद्गलोंमें तो सूक्ष्म परिणमन होनेका और लोकाकाशके एक एक प्रदेशमें भी अनन्तानन्त पुद्गलों और जीवोंको अवगाहन देनेका स्वभाव है। अतः असंख्यातप्रदेशी लोकाकाशमें ही स्थित अनन्त जीवों और अनन्त पुद्गलोंको परिणमन करानेके लिये लोकाकाशके एक एक प्रदेशपर एक एक कालाणुको माननेपर भी
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