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________________ ८० वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला रूप कालाणु लोकाकाशके एक एक प्रदेशपर स्थित है इसलिये वह भी नियमसे एक एक ही है। इस तरह वे सब कालाणु असंख्यात हैं-लोकाकाशके प्रदेशोंको असंख्यात होनेसे उनपर स्थित कालाणु भी असंख्यात प्रमाण हैं और ये सब एक एक पृथक् द्रव्य हैं। इन सब कालाणुओंको ही निश्चयकाल कहते हैं। तथा प्रसिद्ध जो समय,घड़ी,दिन आदि है उसे भाक्त-व्यवहारकाल कहा गया है । __भावार्थ-जो द्रव्यों के परिणमन कराने में बाह्य निमित्तकारण है वह काल-द्रव्य है। और यह एक स्वतन्त्र ही द्रव्य है। क्रिया या अन्य द्रव्यरूप नहीं है। वह दो प्रकारका है--(१) निश्चयकाल (२ । व्यवहारकाल । लोकाकाशप्रमाण कालाणु निश्चयकाल द्रव्य हैं । ये कालाणू लोकाकाशके एक एक प्रदेशपर अव. स्थित हैं और रत्नोंकी राशिकी तरह असंबद्ध (तादात्म्य सम्बन्धसे रहित)और पृथक पृथक् हैं-पिण्डरूप नहीं हैं। यहाँ निश्चयकालद्रव्यके सम्बन्धमें उपयोगी शंका-समाधान दिया जाता है : शंका-कालाणुरूप ही असंख्यात कालद्रव्य क्यों है ? आकाशके समान वैशेषिकादिदर्शनोंकी तरह सर्वव्यापी एक अखण्ड कालद्रव्य क्यों नहीं माना जाता ? समाधान-नाना क्षेत्रों में नाना तरहका परिणमन और ऋतुओंका परिवर्तन इस बातको सिद्ध करता है कि सब जगह काल एक नहीं है-भिन्न भिन्न ही है। अतः कालद्रव्य आकाशकी तरह सर्वव्यापी, अखण्ड, एक द्रव्य न होकर खण्ड, अनेक द्रव्यरूप है। शंका-उपर्युक्त समाधानसे तो इतनी ही बात सिद्ध होती है कि कालद्रव्य एक नहीं है-अनेक भेदवाला है-बहुसंख्यक है। 'वह असंख्यात है' इस बातकी पुष्टि उससे नहीं होती ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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