SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड ७६ भावार्थ-आकाश अनन्तप्रदेशी और अखण्डद्रव्य है । जीवादि पाँच द्रव्योंका आश्रय है। इन द्रव्योंको अवकाश देना उसकी विशुद्ध पर्याय है और अगुरुलघु गुणोंके निमित्तसे जो परिणमन होता है वह उसकी धर्मसंज्ञक पर्याय है। _ 'आकाश' द्रव्यकी द्रव्यपर्यायका कथनगगनानन्तांशानां पिण्डीभावः स्वभावतोऽभेद्यः । पर्यायो द्रव्यात्मा शुद्धो नभसः समाख्यातः ।।३६ ॥ अर्थ-अनन्त आकाश-प्रदेशोंका पिंड, जो स्वभावसे अभेद्य है. जिसके प्रदेश अलग अलग नहीं हो सकते हैं, आकाशद्रव्यकी शुद्ध द्रव्यपर्याय है। ____ भावार्थ-इससे पूर्व पद्य में आकाश-द्रव्यकी धर्मपर्याय कही गई है और इस पदा में उसकी शुद्ध द्रव्यपर्याय बताई गई है। इस तरह आकाशद्रव्यका वर्णन हुआ। (६) काल-द्रव्यका निरूपण कालद्रव्यका स्वरूप और उसके भेदकालो द्रव्यं प्रमाणाद्भवति स समयाणुः किल द्रव्यरूपो लोककैकप्रदेशस्थित इति नियमात्सोऽपि चेकैकमात्रः । संख्यातीताश्च सर्व पृथगिति गणिता निश्चयं कालतत्त्वं भाक्तः कालो हि यः स्यात्समय-घटिका-वासरादिः प्रसिद्धः॥३०॥ ___ अर्थ-'काल' एक स्वतन्त्र द्रव्य है और वह प्रमाणसे सिद्ध है तथा द्रव्यरूप कालाणुओंके नामसे प्रसिद्ध है। और यह द्रव्य * 'प्रोक्तं' मुद्रित प्रतिमें पाट । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy