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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला पाया भी जाय तो वह अत्यन्त सूक्ष्म होता है-बाह्यमें दृष्टिगोचर नहीं होता-ऐसे मुनियोंके उस चारित्रको गौणवीतरागचारित्र कहते हैं। और जिन मुनीश्वरोंका वह अत्यन्त सूक्ष्म अबुद्धिजन्य राग भी विनष्ट हो जाता है उनके चारित्रको साक्षात्वीतरागचारित्र कहते हैं, जो मुक्तिका साक्षात्कारण है।
इस प्रकार 'श्रीअध्यात्मकमलमार्तण्ड' नामक अध्यात्म-ग्रन्थमें मोक्ष और मोक्षमागका कथन करनेवाला प्रथम परिच्छेद समाप्त हुआ।
द्वितीय परिच्छेद
तत्त्वोंका नाम-निर्देशजीवाजीवावास्रवबन्धौ किल संवरश्च निर्जरणं । मोक्षस्तत्त्वं सम्यग्दर्शनसद्धोधविषयमखिलं स्यात् ॥१॥
अर्थ-जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सब ही तत्त्व सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके विषय हैंइनका श्रद्धान सम्यग्दर्शन और इनका बोध सम्यग्ज्ञान है।
पुण्य और पापका आस्रव तथा बंधमें अन्तर्भावआस्रवबन्धान्तर्गतपुण्यं पापं स्वभावतो न पृथक् । तस्मानोद्दिष्टं खलु तत्त्वदृशा सूरिणा सम्यक् ॥२॥
अर्थ-पुण्य और पाप, आस्रव तथा बन्धके अन्तर्गत हैं-- उन्हींमें समाविष्ट हैं-, स्वभावसे पृथक् नहीं हैं। इस कारण तत्त्वदर्शी आचार्य महोदयने इनका प्रथक कथन नहीं किया।
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