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________________ ७९ करणानुयोग-प्रवेशिका ५१४. प्र०-साधारण शरीर नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०-जिस कर्मके उदयसे जीव साधारण शरीर वाला होता है । ५१५. ३०-स्थिर नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०-जिस कर्मके उदयसे रस, रुधिर आदि धातुएँ स्थिर हों, उनका विनाश न हो। ५१६. प्र०-अस्थिर नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०-जिस कर्मके उदयसे रस, रुधिर आदि धातुएँ अस्थिर हों। ५१७. प्र०-शुभ नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०-जिस कर्मके उदयसे अंग और उपांग रमणोय होते हैं। ५१८. प्र०-अशुभ नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०-जिस कर्मके उदयसे अंग और उपांग सुन्दर न हों। ५१९. प्र०-सुभग नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०-सौभाग्यको उत्पन्न करनेवाले कर्मको सुभग नामकर्म कहते हैं। ५२०. प्र०-दुर्भग नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०-दुर्भाग्यको उत्पन्न करनेवाले कर्मको दुर्भग नामकर्म कहते हैं। ५२१. प्र०-सुस्वर नामकर्म किसको कहते हैं ? . उ०-जिस कर्मके उदयसे जीवोंका मधुर स्वर होता है। ५२२. प्र०-दुस्वर नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०-जिस कर्मके उदयसे जीवोंके बुरा स्वर होता है। ५२३. प्र०-आदेय नामकर्म किसको कहते हैं ? उ०—जिस कर्मके उदयसे जोव आदेय होता है, अर्थात् बहुमान्य होता है। ५२४. प्र०-अनादेय नामकर्म किसको कहते हैं ? उ.-जिस कर्मके उदयसे जोव अनादरणीय होता है। ५२५. प्र०-यशःकोति नामकर्म किसको कहते हैं ? उ.- यश नाम गुण का है। उसके प्रकट करनेको कीर्ति कहते हैं। जिस कर्मके उदयसे लोगोंके द्वारा विद्यमान अथवा अविद्यमान गुणोंको भी प्रकट किया जाता है, वह यशःकोति नामकर्म है। ५२६. प्र०-अयशःकोति नामकर्म किसको कहते है ? उ०-जिस कर्मके उदयसे लोगोंके द्वारा विद्यमान अथवा अविद्यमान दुर्गुणोंको प्रकट किया जाता है उसको अयशःकीति नामकर्म कहते हैं । ५२७. प्र०-निर्माण नामकर्म किसको कहते हैं ? उ.-नियत मानको निर्माण कहते हैं। उसके दो भेद हैं-प्रमाण निर्माण और स्थान निर्माण । जंघा, सिर, हाथ वगैरह अवयवोंके प्रमाणके नियामक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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