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करणानुयोग- प्रवेशिका
उ० - जिस कर्म के उदयसे परका घात करनेवाले अवयव हों । जैसे—- साँप
को दाढ़ में विष, बिच्छू के डंक, सिंहके नख, दन्त आदि ।
५०२. प्र - उच्छ्वास नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०- जिस कर्म के उदयसे जीव उच्छ्वास और निःश्वास लेने में समर्थ होता है।
५०३. प्र०
- आताप नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०- जिस कर्म के उदयसे जीवके शरीर में आताप होता है । जैसे- पृथिवोकायिक जोवोंके शरीर रूप सूर्य मण्डलमें आता पाया जाता है।
५०४. प्र० - उद्योत नामकर्म किसको कहते हैं ?
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उ०—जिस कर्मके उदयसे जीव के शरीर में उद्योत उत्पन्न होता है । जैसेचन्द्र खद्योत वगैरह शरीर में उद्योत पाया जाता है ।
५०५. प्र० - विहायोगति नामकर्म किसको कहते हैं ?
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उ०- विहायस् नाम आकाशका है। जिस कर्म के उदयसे जीवका आकाश में गमन हो उसको विहायोगति नामकर्म कहते हैं ।
५०६. प्र०- - तिर्यश्व और मनुष्योंका भूमिपर गमन किस कर्मके उदयसे होता है ?
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उ०- विहायोगति नामकर्मके उदयसे ।
५०७. प्र० - त्रस नामकर्म किसको कहते हैं ? - जिस कर्मके उदयसे दोइन्द्रिय आदि पर्याय हो । ५०८. प्र० - स्थावर नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०- जिस कर्म के उदयसे जोव स्थावर पर्यायको प्राप्त हो । ५०९. प्र० - बादर नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०- जिस कर्मके उदयसे जोव बादरकाय वालोंमें उत्पन्न हो । ५१०. प्र० - सूक्ष्म नामकर्म किसको कहते हैं ?
- जिस कर्मके उदयसे जीव सूक्ष्मताको प्राप्त हो । ५११. प्र० - पर्याप्त नामकर्म किसको कहते हैं ? उ० - जिस कर्मके उदयसे जोव पर्याप्त होता है ।
५१२. प्र० - अपर्याप्त नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०- जिस कर्म के उदयसे जोव पर्याप्तियों को समाप्त करने में समर्थ नहीं होता ।
५१३. प्र० - प्रत्येक शरीर नामकर्म किस को कहते हैं ?
उ०- जिस कर्मके उदयसे जोव प्रत्येक शरोर होता है, अर्थात् एक शरोर में एक हो जोव पाया जाता है ।
उ०
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