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करणानुयोग-प्रवेशिका ४९२. प्र०-असम्प्राप्तासपाटिका संहनन नामकर्म किसको कहते हैं ? . उ०-जिस कर्मके उदयसे जुदे-जुदे हाड़ शिराओंसे बँधे हुए हों। ४९३. प्र०-वर्ण नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०-जिस कर्मके उदयसे जीवके शरीरमें अपनो जातिके अनुसार नियत काले-पीले आदि वर्णको उत्पत्ति हो।
४९४. प्र०-गन्ध नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ.-जिस कर्मके उदयसे जीवके शरीरमें अपनो जातिके अनुसार नियत गन्ध उत्पन्न होती है।
४९५. प्र०-रस नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०-जिस कर्मके उदयसे जोवके शरोरमें अपनो जातिके अनुसार नियत तिक्त आदि रस उत्पन्न हों।
४९६. प्र०-स्पर्श नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०—जिस कर्मके उदयसे जीवके शरीरमें अपनी जातिके अनुसार नियत स्पर्श उत्पन्न होता है।।
४९७. प्र०-आनुपूर्वी नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ०-जिस कर्मके उदयसे जन्मसे पहले और मरणके पोछे बोचके एक, दो और तोन समयमें अर्थात् विग्रह गतिमें वर्तमान जीवके प्रदेशोंका आकार, मरणसे पहलेके शरीरके आकार होता है।
४९८.३०–संस्थान नामकर्म और आनुपूर्वी नामकर्ममें क्या अन्तर है ?
उ.-संस्थान नामकर्मका उदय शरीर ग्रहणके प्रथम समयसे होता है आर आनुपूर्वीका उदय विग्रह गतिमें होता है। आनुपूर्वी के उदयसे हो जीव इच्छित गतिमें जाता है। विग्रह गतिमें आकार विशेष बनाये रखना और इच्छित गतिमें गमन कराना ये दोनों ही आनुपूर्वी के कार्य हैं।
४९९. प्र०- अगुरु लघु नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ.-जिस कर्मके उदयसे जीवका शरीर न तो लोहेके गोलेके समान भारो हो और न आकको रूईको तरह हल्का हो।
५००. प्र०-उपघात नामकर्म किसको कहते हैं ?
उ.---जिस कर्मके उदयसे जोवको पोड़ा देनेवाले अवयव हों, जैसे-बारह सोंगेके सींग।
५०१. प्र०-परघात नामकर्म किसको कहते हैं ? ..४५६. षट्खण्डागम, पु० ६, पृ० ५६-५७ ।
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