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करणानुयोग-प्रवेशिका इसी तरह एक सौ आठ अपूर्वकरण क्षपकोमेंसे सबके सब एक साथ अनिवृत्तिकरण क्षपक हो गये और छै मास तक कोई भी जीव क्षपक अपूर्वकरण नहीं हुआ। अतः उत्कृष्ट अन्तर छै मास होता है। इसी तरह शेष गुणस्थानोंका भो जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर जान लेना। एक जीवकी अपेक्षा उक्त चारों क्षपकोंका और अयोगकेवली गुणस्थानका अन्तर नहीं है क्योंकि क्षपक श्रेणीबाले जीवोंका पतन नहीं होता।
४२९. प्र०-सयोगकेवली गुणस्थानका अन्तरकाल कितना है? . - उ०-नाना जीवों तथा एक जीवकी अपेक्षा भी सयोगकेवली गुणस्थानका अन्तर नहीं है। क्योंकि सयोग केवलियोंका कभी अभाव नहीं होता तथा सयोगकेवलीसे अयोगकेवलो हुए जीव पुनः सयोगकेवली नहीं होते।
४३०. प्र०-मिथ्यादृष्टि गुणस्थान कौन-सा भाव है ? . उ०-मिथ्यात्व कर्मके उदयसे उत्पन्न होनेके कारण मिथ्यादष्टि गुणस्थान औदयिक भाव है क्योंकि जो उदयसे हो उसे औदयिक कहते हैं।
४३१. प्र.-सासादन सम्यग्दृष्टि कौन-सा भाव है ?
उ०-आदिके चार गुणस्थानोंमें जो भाव बतलाये गये हैं वह दर्शन मोहनीयको अपेक्षासे बतलाये गये हैं । इसलिये दर्शन मोहनीय कर्मके उदय, उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशमसे न होने के कारण सासादन सम्यक्त्व पारिणामिक भाव है, क्योंकि जो भाव किसी कर्मों के उदय, उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशमसे नहीं होता उसे पारिणामिक कहते हैं।
४३२. प्र०-सम्यग्मिथ्यावृष्टि कौन-सा भाव है ?
उ०-सम्यग्मिथ्यात्व कर्मका उदय होनेपर श्रद्धान-अश्रद्धान रूप जो मिला हुआ जीव भाव होता है उसमें जो श्रद्धानका अंश है वह सम्यक्त्वका हिस्सा है, उसे सम्यग्मिथ्यात्व कर्मका उदय नष्ट नहीं करता। इसलिये सम्यग्मिथ्यात्व भाव क्षायोपशमिक है।
४३३. प्र०-असंयत सम्यग्दृष्टि कौन-सा भाव है ?
उ०-दर्शन मोहनीयकी उपशमसे उपशम सम्यक्त्व उत्पन्न होता है, इसलिये असंयत सम्यग्दृष्टि औपशमिक भाव है । दर्शन मोहनीयके क्षयसे क्षायिक सम्यक्त्व होता है, इसलिये असंयत सम्यग्दष्टि क्षायिक भाव है। सम्यक्त्व प्रकृतिके देशघाती स्पर्द्धकोंके उदयके साथ रहनेवाला सम्यक्त्व क्षायोपशमिक कहलाता है। इसलिये असंयत सम्यग्दृष्टि क्षायोपशमिक भाव है । इस तरह असंयत सम्यग्दष्टि गुणस्थानमें तीन भाव होते हैं। ...
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