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________________ विषयानुक्रमणी १३७ ४३६ प्रश्नांक प्रश्नांक अपकर्षण ५८४ अप्रशस्त उपशम अपूर्वकरण गुणस्थान १२६ अप्रमत्तविरतोंकी संख्या ४०० अपूर्वकरण गुणस्थानका अयशःकीर्ति नामकर्म ५२६ अन्तरकाल ४२७ अयोगकेवलो गुणस्थान अपूर्वकरण गुणस्थानमें कितनी अयोगकेवली गुणस्थानका काल ४२१ प्रकृतियोंका बन्ध ६४६ अयोगकेवली गुणस्थानका अपूर्वकरण गुणस्थानमें किन अन्तरकाल ४२८ प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति ६५० अयोगकेवली गुणस्थान कितने हैं ४०४ अपूर्वकरण गुणस्थानमें कितनी अयोगकेवली गुणस्थान कौन प्रकृतियोंका उदय ६७४ भाव अपूर्वकरण गुणस्थानमें उदय अयोगकेवलो गुणस्थान में बन्ध ६५८ व्युच्छित्ति ६७५ अयोगकेवली गुणस्थानमें उदय ६८६ अपूर्वकरणमें कितनी अयोगकेवलो गुणस्थानमें प्रकृतियोंका सत्त्व उदयव्युच्छित्ति ६८७ अपूर्वकरण आदि चार अयोगकेवली गुणस्थानमें सत्त्व ७०६ उपशमक गुणस्थान कौन अयोगकेवली गुणस्थानमें भावरूप हैं। ४३५ सत्त्व व्युच्छित्ति ७०७ अपर्याप्त नामकर्म ५१२ अर्धच्छेद अप्रतिष्ठित प्रत्येक २३६ अर्धनाराच संहनन ४६० अप्रत्याख्यानावरण ४६५ अल्पबहुत्वानुयोगमें अप्रमत्तविरत गुणस्थान ११६ किसका कथन अप्रमत्तविरत गुणस्थानके भेद ११७ अवग्रहज्ञान अप्रमत्तविरत गुणस्थानका अवधिज्ञान ३०७ अन्तरकाल ४२६ अवधिज्ञानके भेद ३०८ अप्रमत्तविरत गुणस्थानमें अवधि दर्शन ३४३ बन्धयोग्य प्रकृतियां ६४७ अवायज्ञान अप्रमत्तविरत गुणस्थानमें अविगामी प्रतिच्छेद ५५८ बन्धव्युच्छित्ति ६४८ अवसर्पिणी उत्सपिणो । अप्रमत्तविरत गुणस्थानमें उदय ६७२ अवसर्पिणी उत्सर्पिणीके भेद ६६ अप्रमत्तविरत गुणस्थानमें अविरत सम्यग्दृष्टी गुणस्थान १११ उदयव्युच्छित्ति ६७३ अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें अप्रमत्तविरत गुणस्थानमें सत्त्व ६६६ अन्तरकाल ४२६ Liila ILU, ३६६ २९१ २६३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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