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करणानुयोग-प्रवेशिका उ.-असंयत, देश संयत प्रमत्त संयत अथवा अप्रमत्त संयत गुणस्थानवर्ती वेदक सम्यग्दृष्टि मनुष्य पहले तो अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके अन्तमें अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभका संवियोजन करता है अर्थात् उन्हें बारह कषाय और नव नोकषाय रूप कर देता है। उसके पश्चात् दर्शन मोहनोयको क्षपणाका आरम्भ करता है।
३७१. प्र०-दर्शन मोहनीयको क्षपणाका आरम्भ कहाँ करता है ? __उ०-अढ़ाई द्वीप-समुद्रोंमें स्थित पन्द्रह कर्मभूमियोंमें जहाँ जिस कालमें केवली तीर्थङ्कर होते हैं वहाँ उस कालमें कर्मभूमिया मनुष्य ही दर्शन मोहनीयको क्षपणाका आरम्भ करता है।
३७२. प्र०-दर्शन मोहनीयको क्षपणाका प्रस्थापक कौन कहलाता है ?
उ०-दर्शन मोहनीयको क्षपणाके लिए किये गए अधःकरणके प्रथम समयसे लेकर जबतक जीव मिथ्यात्व और सम्यक् मिथ्यात्व प्रकृतिका द्रव्यको सम्यक्त्व प्रकृतिरूप संक्रमण कराता है तबतक उसे दर्शनमोहकी क्षपणाका प्रस्थापक कहते हैं।
३७३. प्र०-दर्शन मोहनीयकी क्षपणाका निष्ठापक कब कहलाता है ?
उ.--कृतकृत्य वेदक होनेके प्रथम समयसे लेकर आगेके समयोंमें दर्शन मोहको क्षपणा करनेवाला जीव निष्ठापक कहलाता है।
३७४. प्र०-कृतकृत्य वेदक किसको कहते हैं ?
उ०-दर्शन मोहनोयको क्षपणाके लिये किये गये तीन कारणोंमेंसे अनिवृत्तिकरणके अन्त समयमें सम्यक्त्व प्रकृतिके अन्तिम फालिके द्रव्यको नोचेके निषकोंमें क्षेपण करनेके पश्चात् अनन्तर समयसे लगाकर अनिवृत्तिकरण कालके संख्यातवें भाग मात्र अन्तर्मुहर्त कालपर्यन्त जीव कृतकृत्य वेदक कहा जाता है क्योंकि जिसने करने योग्य कार्य कर लिया उसे कृतकृत्य कहते हैं सो दर्शनमोहको क्षपणाके योग्य कार्य अनिवृत्तिकरण कालके अन्त समयमें हो हो जाता है । अतः वह कृतकृत्य वेदक कहा जाता है।
३७५. प्र०-दर्शन मोहकी क्षपणाका निष्ठापन कहाँ करता है ?
उ०-दर्शन मोहनीयको क्षपणाका आरम्भ करनेवाला मनुष्य कृतकृत्य वेदक होनेके पश्चात् आयुका क्षय होनेसे यदि मरणको प्राप्त होता है तो सम्यक्त्व ग्रहण करनेसे पहले बाँधी हुई आयुके अनुसार चारों गतियोंमें उत्पन्न होकर दर्शन मोहनीयकी क्षपणाको पूर्ण करता है। उसमें इतना विशेष ३७५० षट्खण्डागम, पु० ४, पृ० २६ ।
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