SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 25 करणानुयोग-प्रवेशिका उ०- मिथ्यात्वसहित अवधिज्ञानको कुअवधि या विभंगज्ञान कहते हैं । ३२६. प्र० - किन गुणस्थानोंमें कौन-कौन ज्ञान होते हैं ? उ०- कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान और कुअवधिज्ञान आदिके दो गुणस्थानों में होते हैं किन्तु इतनी विशेषता है कुमति और कुश्रुत एकेन्द्रिय आदिके भी होते हैं जब कि कुअवधि सैनी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकके ही होता है । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान चौथे से बारहवें गुणस्थान तक होते हैं । मन:पर्यय छठे से बारहवें गुणस्थान तक होता है और केवलज्ञान तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानों में तथा सिद्धों में होता है । ३२७. प्र० - संयम किसको कहते हैं ? उ०- अहिंसा आदि व्रतोंको धारण करने, ईर्ष्या आदि समितियों को पालने, क्रोध आदि कषायों का निग्रह करने, मन, वचन, कायरूप दण्डका त्याग करने और स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियोंको जीतनेका नाम संयम है । ३२८. प्र० - संयम मार्गणाके कितने भेद हैं ? उ०- सात भेद हैं- सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय, यथाख्यात, संयमासंयम और असंयम । ३२९. प्र० - सामायिक संयम किसको कहते हैं ? उ०—'मैं सब प्रकारके सावद्ययोगका त्याग करता हूँ' इस प्रकार सकल सावद्ययोगके त्यागको सामायिक संयम कहते हैं । ३३०. प्र०- - छेदोपस्थापना संयम किसको कहते हैं ? - उस एक व्रतका छेद अर्थात् दो, तीन आदि भेद करके उपस्थापन अर्थात् धारण करनेको छेदोपस्थापना संयम कहते हैं । 1-02 ३३१. प्र० - परिहारविशुद्धि संयम किसको कहते हैं ? उ० - हिंसाका परिहार ही जिसमें प्रधान है ऐसे संयमको परिहारविशुद्धि संयम कहते हैं । ३३२. प्र० - परिहारविशुद्धि संयम किसके होता है ? उ०- तीस वर्ष तक इच्छानुसार भोगोंको भोगकर और सामायिक या छेदोपस्थापना संयम धारण करके जो प्रत्याख्यान पूर्वक भले प्रकार अध्ययन करता है और तपोविशेषसे परिहार ऋद्धिको प्राप्त कर लेता है, ऐसा तपस्वी मनुष्य तीर्थंङ्करके पादमूलमें परिहारविशुद्धि संयम को धारण करता है । ३३३. प्र० - सूक्ष्मसाम्पराय संयम किसको कहते हैं ? उ०- सामायिक अथवा छेदोपस्थापना संयमको धारण करनेवाले मुनि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy