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करणानुयोग-प्रवेशिका २८३. प्र०-किन जीवों में कौनसा वेद होता है ?
उ०-नारको नपुंसकवेदो हो होते हैं। देवोंमें स्त्री और पुरुष दो ही वेद होते हैं। मनुष्य और तिर्यञ्चोंमें तीनों वेद पाये जाते हैं।
२८४. प्र०-कषाय किसको कहते हैं ? उ०-जो जीवके कर्मरूपी खेत का कर्षण करतो है उसे कषाय कहते हैं। २८५. प्र०-कषायके कितने भेद हैं ? उ०-चार हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ । २८६. प्र०-कषाय कितने गुणस्थान तक रहती है ?
उ०-क्रोध, मान और माया नौवें गुणस्थान तक होते हैं और लोभकषाय दसवें गुणस्थान तक रहती है। उसके बादके गुणस्थानवाले जोव अकषाय होते हैं।
२८७. प्र०-ज्ञान किसको कहते हैं ?
उ०-जिसके द्वारा जीव त्रिकालवर्ती समस्त द्रव्य, उनके गुण और उनकी पर्यायोंको प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे जानते हैं उसे ज्ञान कहते हैं।
२८८. प्र०-ज्ञानमार्गणाके कितने भेद हैं ?
उ०-आठ हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवलज्ञान, कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान और कुवधिज्ञान ।
२८९. प्र.-मतिज्ञान किसको कहते हैं ?
उ०-पाँच इन्द्रियों और मनको सहायतासे जो पदार्थका ग्रहण होता है उसे मतिज्ञान कहते हैं।
२९०. प्र०–मतिज्ञानके कितने भेद हैं ? उ०-चार हैं-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। २६१. प्र०-अवग्रह किसको कहते हैं ?
उ.-इन्द्रिय और पदार्थका सम्बन्ध होनेके अनन्तर समयमें जो आद्य ग्रहण होता है उसे अवग्रह कहते हैं। जैसे-चक्षुसे सफेद रूपका जानना अवग्रह है।
२९२. प्र०-ईहा किसको कहते हैं ?
उ०-अवग्रहसे जाने हुए पदार्थके विशेषको जानने के लिए अभिलाषा रूप जो ज्ञान होता है उसे ईहा कहते हैं। जैसे—यह सफेद रूपवाली वस्तु क्या है ? यह तो बगुलों को पंक्ति मालूम होतो है।
२९३. प्र०-अवाय किसको कहते हैं ?
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