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करणानुयोग-प्रवेशिका शरीरके साथ आत्मप्रदेशोंके बाहर निकलनेको आहारक समुद्घात कहते हैं और केवलज्ञानीके समुद्घातको केवली समुद्घात कहते हैं।
२७५. प्र०-केवली समुद्घात क्यों करते हैं ?
उ.-आयु कर्मकी स्थितिसे अन्य तीन कर्मोंकी स्थिति अधिक होनेपर उनकी स्थिति भी आयु कर्मके समान करनेके लिए केवली समुद्घात करते हैं।
२७६. प्र०-सभी केवली समुद्घात करते हैं क्या ? |
उ०-यतिवृषभ आचार्यके मतसे सभी केवली समुद्घात करके ही मुक्त होते हैं। अन्य आचार्यके मतसे कुछ केवली समुद्घात करते हैं और कुछ नहीं करते।
२७७. प्र०केवली समुद्घातमें कितना समय लगता है ?
उ०-केवली समुद्घातमें आठ समय लगते हैं-पहले समयमें आत्मप्रदेशोंको फैलाकर दण्डके आकार करते हैं। दूसरे समयमें कपाटके आकार करते हैं, तीसरे समय में प्रतररूप करते हैं और चौथे समयमें आत्मप्रदेशोंसे लोकको पर देते हैं। पाँचवें समयसे लोकपूरणसे प्रतररूप, छठेमें प्रतरसे कपाटरूप, सातवेंमें कपाटसे दण्डरूप और आठवेंमें फिरसे शरोरमें प्रविष्ट हो जाते हैं।
२७८. प्र०-एक कालमें योग कितने होते हैं ? उ०—एक कालमें एक जीवके एक ही योग होता है। २७९. प्र.-वेद किसको कहते हैं ?
उ०-चारित्र मोहनीयके भेद पुरुषवेद, स्त्रोवेद और नपुंसकवेदरूप नोंकषायके उदयसे उत्पन्न हुई मैथुनकी अभिलाषाको भाववेद कहते हैं और नामकर्मके उदयसे शरीरमें प्रकट होनेवाले चिह्न विशेषको द्रव्यवेद कहते हैं।
२८०. प्र०-वेदके कितने भेव हैं ? उ०-तीन हैं-पुरुषवेद, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद।। २८१. प्र.-भाववेद और द्रव्यवेद समान ही होते हैं या असमान भी?
उ०-देव, नारकी, भोगभूमि या तिर्यञ्च और मनुष्योंमें जैसा द्रव्यवेद होता है वैसा ही भाववेद भी होता है। किन्तु कर्मभूमिया मनुष्य और तिर्यञ्चोंमें किन्हींके तो जैसा द्रव्यवेद होता है वैसा ही भाववेद होता है और किन्हींके द्रव्यवेद दूसरा होता है और भाववेद दूसरा होता है।
२८२. प्र०-भाववेद किस गुणस्थान तक होता है ?
उ०-नौवें गुणस्थानके सवेद भाग पर्यन्त होता है। इसके आगे जीव वेदरहित होते हैं।
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