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करणानुयोग-प्रवेशिका .. १४२. प्र०-जीवसमास किसे कहते हैं ?
उ०—जिनके द्वारा अथवा जिनमें सब संसारी जीवोंका संग्रह किया जाता है उन्हें जीवसमास कहते हैं।
१४३ प्र०-संक्षेपसे जीवसमासके कितने भेद हैं ?
उ.-चौदह भेद हैं-एकेन्द्रियके दो भेद-बादर और सूक्ष्म, विकलेन्द्रियके तीन भेद-दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय तथा पञ्चेन्द्रियके दो भेद-सैनी और असैनो। ये सातों पर्याप्तक और अपर्याप्तकके भेद से दो-दो प्रकार के होते हैं।
१४४.प्र.-विस्तारसे जीवसमासके कितने भेद हैं ?
उ०-अट्ठानबे-एकेन्द्रियके बयालीस, विकलेन्द्रियके नौ, पञ्चेन्द्रियके सैंतालोस।
१४५. प्र०-एकेन्द्रियके बयालीस भेद कौनसे हैं ? ।
उ०-पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और साधारण वनस्पतिकायिकके दो भेद नित्यनिगोद और इतरनिगोद ये छहों बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं, अतः बारह भेद हुए, तथा प्रत्येक वनस्पतिकायिक के दो भेद हैं-सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित । ये चौदहों पर्याप्तक, निर्वृत्त्यपर्याप्तक और लब्ध्यपर्याप्तकके भेदसे तीन-तीन प्रकारके होते हैं । इस तरह एकेन्द्रियके ४२ जीवसमास होते हैं।
१४६. प्र०-विकलेन्द्रियके नौ भेद कौनसे हैं ?
उ०-दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रियके पर्याप्तक, नित्यपर्याप्तक और लब्ध्यपप्तिककी अपेक्षासे नौ जीवसमास होते हैं।
१४७. प्र०-पञ्चेन्द्रियके सैंतालीस भेद कौनसे हैं ?
उ.-तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियके ३४, मनुष्यके नौ, देवोंके दो और नारकियोंके दो।
१४८. प्र०-तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियके ३४ भेद कौनसे हैं ? उ०-कर्मभूमियाके तोस और भोगभूमियाके चार । १४६. प्र-कर्मभूमिया तिर्यञ्चके तीस भेद कौनसे हैं ?
उ०--कर्मभूमियाके तीन भेद हैं-जलचर, नभचर और थलचर। ये तीन संज्ञो और असंजीके भेदसे दो-दो प्रकारके होने के कारण छै भेद हुए। ये छहों गर्भज भी होते हैं और नपुंसक भी होते हैं। गर्भजोंमें पर्याप्त और निवृत्त्यपर्याप्त ये दो भेद होते हैं और सम्मूर्छनोंमें पर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्य
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