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करणानुयोग-प्रवेशिका
पर्याप्त ये तीन भेद होते हैं । अतः कर्मभूमिया पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चके ६x२= .१२ + [(६×३) = १८ ] = ३० । कुल तीस भेद होते हैं ।
१५०. प्र०- -भोगभूमिया तिर्यञ्चके चार भेद कौनसे हैं ?
उ०- भोगभूमि में जलचर तिर्यञ्च नहीं होते तथा सब गर्भज और संज्ञो ही होते हैं । अतः थलचर और नभचर और उनके पर्याप्तक और निर्वृत्त्यपर्याप्तककी अपेक्षा चार भेद हुए ।
१५१. प्र०. - मनुष्योंके नौ भेद कौनसे हैं ?
उ०- - आर्यंखण्ड के मनुष्य, म्लेच्छ खण्डके मनुष्य, भोगभूमिके मनुष्य और कुभोगभूमिके मनुष्य, इस प्रकार मनुष्यके चार भेद हैं । इनमें से आर्यखण्ड के मनुष्य पर्याप्तक, निर्वृत्यपर्याप्तक और लब्ध्यपर्याप्तकके भेदसे तीन प्रकार के होते हैं और शेष तोन पर्याप्तक और निर्वृत्यपर्याप्तकके भेदसे दो-दो ही प्रकार के होते हैं ।
१५२. प्र० - नारकियोंके दो भेद कौनसे हैं ? उ०- पर्याप्तक और निर्वृत्यपर्याप्तक । १५३. प्र० – देवोंके दो भेद कौनसे हैं ? उ०- पर्याप्तक और निर्वृत्यपर्याप्तक । १५४. प्र० - पर्याप्तक किसे कहते हैं ?
उ० -- जिस जीवको शरीरपर्याप्ति पूर्ण हो गई है उसको पर्याप्तक कहते हैं ।
१५५. प्र०- - निर्वृत्यपर्याप्तक किसे कहते हैं ?
- जब तक जीवको शरीरपर्याप्ति पूर्ण न हुई हो, किन्तु नियमसे पूर्ण होनेवाली हो, तब तक उस जीवको निर्वृत्त्यपर्याप्तक कहते हैं । १५६. प्र० - लब्ध्यपर्याप्तक किसे कहते हैं ?
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उ०—जिस जीवकी एक भी पर्याप्ति पूर्ण न हो और श्वासके अट्ठारहवें भाग में ही मरण होनेवाला हो उसको लब्ध्यपर्याप्तक कहते हैं ।
१५७. प्र० -- पर्याप्ति किसे कहते हैं ?
उ०- आहारवर्गणा, भाषावर्गणा, और मनोवगंणाके परमाणुओं को शरीर आदि रूप परिणमानेको शक्तिकी पूर्णताको पर्याप्ति कहते हैं । १५८. प्र० - पर्याप्ति के कितने भेद हैं ?
उ०- पर्याप्तिके छ भेद हैं- आहारपर्याप्ति, शरोरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, भाषापर्याप्ति और मनः पर्याप्ति ।
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