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________________ करणानुयोग-प्रवेशिका १३८. प्र.-किस गुणस्थानसे जीव किस गुणस्थानमें जा सकता हैं ? उ०-मिथ्यादृष्टि तोसरे, चौथे, पाँचवें और सातवें गुणस्थानको प्राप्त कर सकता है। दूसरे सासादनगुणस्थानवाला जीव गिरकर मिथ्यात्वमें ही आता है, ऊपर नहीं चढ़ सकता। मिश्र गुणस्थानवाला पहले या चौथे गुणस्थानको प्राप्त होता है। अविरत सम्यदष्टी और देशविरत, अप्रमत्त संयत गुणस्थान तक प्रमत्त संयतके सिवाय अन्य किसी भी गुणस्थानको प्राप्त हो सकते हैं। प्रमत्तसंयत गणस्थानवाला अप्रमत्त संयत पर्यन्त द्वैगुणस्थानोंमेंसे किसी भी गणस्थानको प्राप्त हो सकता है। अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवाला छठे गणस्थानको या अपूर्वकरण गुणस्थानको प्राप्त होता है। उपशमश्रेणिवाले जीव उपशमश्रेणीके गुणस्थानोंपर क्रमसे चढ़ते हैं और क्रमसे ही उतरते हैं। अर्थात् अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानवाले एक अपने से नोचेके और एक अपनेसे ऊपरके, इस तरह दो ही गुणस्थानोंको प्राप्त कर सकते हैं और उपशान्त कषाय गुणस्थानवाला ऊपर नहीं चढ़ता, नीचे ही आता है अतः वह एक सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानको ही प्राप्त होता है। क्षपकश्रेणिवाले जीव आठवें, नौवें, दसवें और बारहवें आदि गुणस्थानमें क्रमसे चढ़ते हैं। १३९. प्र०-किस गुणस्थानमें मरण होता है ? उ.-तीसरे गुणस्थानमें तथा क्षपकश्रेणिके चार गुणस्थानोंमें और तेरहवें गुणस्थानमें मरण नहीं होता। शेष गुणस्थानोंमें होता है। १४०. प्र०-किस गुणस्थानमें मरकर जीव किस गतिमें जाता है ? उ०-पहले और चौथे गुणस्थानसे मरकर जीव चारों गतियोंमेंसे किसी भो गतिमें जा सकता है। सासादनसे मरकर नरक गतिमें नहीं जाता, शेष तीनोंमेंसे किसी भी गतिमें जा सकता है। चौदहवें गुणस्थानसे मुक्ति होती है और शेष सात गुणस्थानोंसे मरकर जोव नियमसे देवगतिमें जन्म लेता है। १४१. प्र०-किन अवस्थाओंमें मरण नहीं होता? उ०-मिश्र काययोगवाले, प्रथमोपशम सम्यक्त्ववाले और सातवें नरक में दूसरे आदि गुणस्थानोंमें वर्तमान जोवोंका मरण नहीं होता। अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन करके जो जोव मिथ्यात्व गुणस्थानमें आ जाता है एक अन्तर्मुहूर्त तक उसका मरण नहीं हो सकता। दर्शनमोहका क्षय करनेवाला जब तक कृत्यकृत्य नहीं हो जाता तब तक उसका मरण नहीं होता। १३८, कर्मकाण्ड, गा० ५५७-५५६ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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