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करणानुयोग- प्रवेशिका
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होती हैं । पीछे वे जिन देवोंकी नियोगिनी होती हैं वे देव उन्हें अपने-अपने स्वर्गो में ले जाते हैं ।
७५. प्र० – स्वर्गीमें जन्म और मरणका अन्तर काल कितना है ?
उ०- यदि किसी स्वर्ग में किसीका जन्म न हो या कोई न मरे तो उसका उत्कृष्ट विरह काल क्रमसे सौधर्म युगलमें सात दिन, दूसरे युगलमें एक पक्ष, फिर चार स्वर्गों में एक मास, फिर चार स्वर्गीमें दो मास, फिर चार स्वर्गों में छै मास और शेषग्रैवेयक वगैरह में छै मास जानना ।
७६. प्र० – स्वर्गो देवांगनाओंकी आयुका प्रमाण कितना है ?
उ०- सौधर्म आदि सोलह स्वर्गीमें देवांगनाओं की उत्कृष्ट आयु क्रमसे पाँच, सात, नौ, ग्यारह, तेरह, पन्द्रह, सत्रह, उन्नीस, इक्कीस, तेईस, पच्चीस, सत्ताईस, चोंतीस, इकतालीस, अड़तालिस और पचपन पल्य है और जघन्य आयु सौधर्म युगल में कुछ अधिक एक पल्य है ।
७७. प्र० – स्वर्गीमें देवोंकी आयुका प्रमाण कितना है ?
उ०- सौधर्म युगल में देवोंकी जघन्य आयु एक पल्यसे कुछ अधिक है । उत्कृष्ट आयु सौधर्म युगलमें कुछ अधिक दो सागर, सानत्कुमार माहेन्द्र कल्प में कुछ अधिक सात सागर, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर में कुछ अधिक दस सागर, लांतव कापिष्ठ स्वर्ग में कुछ अधिक चौदह सागर, शुक्र महाशुक्र में कुछ अधिक सोलह सागर, शतार सहस्रारमें कुछ अधिक अठारह सागर, आनत प्राणत में बीस सागर और आरण अच्युतमें बाईस सागर है । इससे आगे नौग्रैवेयकोंमें क्रमसे तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्टाईस, उनतीस, तीस और इकतीस सागर प्रमाण उत्कृष्ट आयु है । नौ अनुदिशों में बत्तीस सागर और पाँच अनुत्तरों में तैंतीस सागर उत्कृष्ट आयु है तथा नीचेके युगलमें जो उत्कृष्ट आयु है, वही एक समय अधिक ऊपरके युगल में जघन्य आयु है ।
७८. प्र० - सहस्रारस्वर्ग तक ही कुछ अधिक आयु होनेका कारण क्या है ?
उ० – जो सम्यग्दृष्टि घातायुष्क होता है उसके अपने-अपने स्वर्गकी उत्कृष्ट आयु से अन्तर्मुहूर्त कम आधा सागर प्रमाण आयु अधिक होती है और ऐसा जीव सहस्रारस्वर्ग पर्यन्त ही जन्म लेता है ।
७९. प्र० - घातायुष्क किसे कहते हैं ?
उ० – जिस जीवने पूर्वभवमें आयुका बंध किया, पीछे वह आयु घटकर थोड़ी रह गयी उस जीवको घातायुष्क कहते हैं ।
७५. वि० सा०, गा० ५४२ ।
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