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________________ करणानुयोग-प्रवेशिका उ.-चौबीस तीर्थङ्कर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ नारायण और नौ प्रतिनारायण ये त्रेसठ शलाका पुरुष अर्थात् गणनीय महापुरुष कहे जाते हैं । ७०. प्र.-चौबीस तीर्थङ्करोंके नाम क्या हैं ? उ०-ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व और वर्द्धमान ये भरत क्षेत्रमें उत्पन्न हुए चौबीस तीर्थङ्करोंके नाम हैं। ७१. प्र०-चौबीस तीर्थङ्करोंका जन्म स्थान कहाँ है ? उ०-ऋषभनाथ, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ और अनन्त नाथका जन्मस्थान अयोध्या है। संभवनाथका जन्मस्थान श्रावस्ती नगरी है, पद्मप्रभका जन्मस्थान कौशाम्बी है, सुपार्श्व और पार्श्वनाथका जन्मस्थान वाराणसी ( बनारस ) है, चन्द्रप्रभका जन्मस्थान चन्द्रपुरी और श्रेयांसनाथका जन्मस्थान सिंहपुरी ( बनारसके पास सारनाथ ) है । पुष्पदन्तका जन्म स्थान काकन्दी, शीतलनाथका भद्दलपुर ( भेलसा ), वासुपूज्यका चम्पानगरी, विमल नाथका कंपिला, धर्मनाथका रत्नपुरी ( अयोध्याके पास ), शान्ति, कुन्थु और अरनाथका हस्तिनापुर, मल्लिनाथ और नमिनाथका मिथिलापुरी, नेमिनाथका शौरीपुर (बटेश्वरके पास ), मुनिसुव्रतनाथका राजगृह और वर्धमानका जन्मस्थान कुण्डलपुर है। ७२. प्र०-चौबीस तीर्थङ्करोंके निर्वाणस्थान कौनसे हैं ? उ०-भगवान् ऋषभदेवका निर्वाणस्थान कैलासपर्वत है, वासुपूज्यका चम्पापुर, नेमिनाथका गिरनारपर्वत और महावीर वर्द्धमानका निर्वाणस्थान पावापुरी है । शेष तीर्थङ्करोंको निर्वाण-भूमि सम्मेदशिखर पर्वत है। ७३. प्र०-ऊर्ध्वलोकका विशेष स्वरूप क्या है ? उ०-मेरुसे लेकर सात राजू ऊँचा ऊर्ध्वलोक है। उसमें छै राजूको ऊँचाई में सोलह स्वर्ग हैं। सो मेरुतलसे लेकर डेढ़ राजूकी ऊँचाईमें सौधर्म और ईशान स्वर्ग हैं। उनके इकतीस पटल हैं। सो मेरुको चोटोसे एक बालके अग्र भाग बराबर अन्तराल छोड़कर प्रथम पटल है। उसके ऊपर असंख्यात योजनका अन्तराल छोड़कर दूसरा पटल है। इसी तरह असंख्यात असंख्यात योजनका अन्तराल छोड़कर ऊपर-ऊपर पटल हैं। प्रत्येक पटलके बोचमें जो एक विमान होता है उसे इन्द्रकविमान कहते हैं। सो मेरुके ऊपर ऋतु नामका इन्द्रकविमान है। उसोको सोधमें ऊपर-ऊपर प्रत्येक पटल में एक-एक इन्द्रक विमान जानना चाहिये। प्रत्येक पटलमें उस इन्द्रकविमानकी चारों दिशाओं में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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