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करणानुयोग-प्रवेशिका उ-तीन भेद हैं-संख्यात, असंख्यात और अनन्त । असंख्यातके तीन भेद हैं-परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यात । अनन्तके भी तीन भेद हैं-परीतानन्त, युक्तानन्त और अनन्तानन्त । इसतरह सात भेद हुए। इनमेंसे भी प्रत्येकके जघन्य, मध्यम और उत्कृष्टके भेदसे तीन-तीन भेद हैं । इस तरह इक्कीस भेद हुए।
२३. प्र०-उपमा मानके कितने भेद हैं ?
उ०-आठ भेद हैं-पल्य, सागर, सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगच्छ्रेणी, जगत्प्रतर और लोक ।
२४. प्र०-पल्य किसे कहते हैं ?
उ.-पल्य कहते हैं गड्ढेको । उस गड्ढे से पाये गये कालको भी पल्य या पल्योपम कहते हैं।
२५. प्र०-पत्यके कितने भेद हैं ?
उ०-पल्यके तीन भेद हैं-व्यवहारपल्य, उद्धारपल्य और अद्धापल्य' । बाकोके दो पल्योंके व्यवहारका मूल होनेसे प्रथम पल्यका नाम व्यवहारपल्य है। इसके द्वारा किसीको मापा नहीं जाता। दूसरेका नाम उद्धारपल्य है क्योंकि उससे उद्धृत ( निकाले गये ) रोमोंके आधारसे द्वीप और समुद्रोंको गणना की जाती है। तीसरेका नाम अद्धापल्य है। अद्धा कालको कहते हैं अतः इससे मनुष्य, तिर्यञ्च, देव वगैरहकी आयु मापी जाती है।
२६. प्र०-व्यवहारपल्य किसे कहते हैं ?
उ०-प्रमाणांगुलसे मापे गये योजन बराबर लम्बे-चौड़े और गहरे अर्थात् दो हजार कोस गहरे और दो हजार कोस चौड़े गोल गड्ढे में, एक दिनसे लेकर सात दिन तकके जन्मे हुए मेढ़े के बालोंको, कैचीसे ऐसा काटकर कि जिसे फिर काटा न जा सके, खूब ठोककर भर दो। यह पहला व्यवहारपल्य है। सौ-सौ वर्षमें एक रोम निकालनेपर जितने समयमें वह गड्ढा खाली हो उतने कालको व्यवहार-पल्योपमकाल कहते हैं ।
२७. प्र०-उद्धारपल्य किसे कहते हैं ?
उ०--व्यवहारपल्यके प्रत्येक रोमके बुद्धिके द्वारा इतने टुकड़े करो जितने असंख्यात कोटि वर्षके समय होते हैं और उन्हें दो हजार कोस गहरे और दो हजार कोस चौड़े गोल गड्ढे में भर दो। उसे उद्धारपल्य कहते हैं। उसमें से प्रति समय एक-एक रोम निकालनेपर जितने समयमें वह खाली हो उतने कालको उद्धारपल्योपम कहते हैं।
२८. प्र०-अद्धापल्य किसे कहते हैं ?
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