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करणानुयोग-प्रवेशिका जैसे-चार हाथ लम्बे, चार हाथ चौड़े और पांच हाथ ऊँचे क्षेत्रका खातफल ४४४४५= ८० हाथ हुआ।
१६. प्र०-व्यास या परिधि किसे कहते हैं ?
उ.-गोलाकार क्षेत्रके बीच में जितना विस्तार होता है उसे व्यास कहते हैं और गोलाकार क्षेत्रकी गोलाईके प्रमाणको परिधि कहते हैं।
१७. प्र०-परिधि और क्षेत्रफलका क्या नियम है ?
उ०-मोटेतौरपर व्याससे तिगनी परिधि होती है और परिधिको व्यासकी चौथाईसे गुणा करनेपर क्षेत्रफल होता है तथा क्षेत्रफलको ऊँचाई या गहराईसे गुणा करनेपर खातफल होता है।
१८. प्र०-मानके कितने भेद हैं ? उ०-दो भेद हैं-लौकिक मान और लोकोत्तर मान । १९. प्र०-लौकिक मान किसे कहते हैं ?
उ०-लोकमें प्रचलित मानको लौकिक मान कहते हैं। उसके छै भेद हैंमान, उन्मान, अवमान, गणिमान, प्रतिमान और तत्प्रतिमान । अन्न वगैरह मापनेके बरतनोंको मान कहते हैं । तराजूको उन्मान कहते हैं। चुल्लू वगैरहको अवमान कहते हैं। जैसे--एक चुल्लू जल। एक आदिको गणिमान कहते हैं। जैसे-एक, दो, तोन। गुंजा आदिको प्रतिमान कहते हैं, जैसेरत्ती, मासा वगैरह। घोड़ेको लम्बाई वगैरह देखकर उसका मूल्य आँकना तत्प्रतिमान है।
२०. प्र०-लोकोत्तर मानके कितने भेद हैं ?
उ.-चार भेद हैं-द्रव्यमान, क्षेत्रमान, कालमान और भावमान । एक परमाणु जघन्य द्रव्यमान है और सब द्रव्योंका समूह उत्कृष्ट द्रव्यमान है। एक प्रदेश जघन्य क्षेत्रमान है और समस्त आकाश उत्कृष्ट क्षेत्रमान है। एक समय जघन्य कालमान है और सर्वकाल उत्कृष्ट कालमान है। सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीवका पर्याय श्रुतज्ञान जघन्य भावमान है और केवलज्ञान उत्कृष्ट भावमान है।
२१. प्र०-द्रव्यमानके कितने भेद हैं ? उ०-दो भेद हैं-संख्यामान और उपमामान ।
२२. प्र०-संख्यामानके कितने भेद हैं ? १७. त्रि० सा०, गा० १७ । १८-१६. त्रि० सा०, गा० ६। २०-२१. त्रि० सा०, गा० ११-१२ । २२. संख्यामानके भेदोंका विस्तृत स्वरूप जानने के लिये त्रि० सा०, गा० १५-५१ देखो।
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