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करणानुयोग-प्रवेशिका उ०--उद्धारपल्यके प्रत्येक रोमके पुनः इतने टुकड़े करो जितने सौ वर्षमें समय होते हैं और उन्हें पूर्वोक्त प्रमाण गड्ढे में भर दो। उसे अद्धापल्य कहते हैं। उसमेंसे प्रति समय एक-एक रोम निकालनेपर जितने समयमें वह गड्ढा खाली हो उतने कालको अद्धापल्योपम कहते हैं ।
२९. प्र०-अंगुलके कितने भेद हैं ? उ०-अंगुलके तीन भेद हैं-उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल और आत्मांगुल। ३०. प्र०-उत्सेधांगुल किसे कहते हैं ?
उ०-अनन्तानन्त परमाणुओंके संघातसे एक उत्संज्ञासंज्ञा नामका स्कन्ध उत्पन्न होता है। आठ उत्संज्ञासंज्ञा मिलकर एक संज्ञासंज्ञा नामक स्कन्ध होता है। आठ संज्ञासंज्ञा मिलकर एक त्रुटिरेणु होता है। आठ त्रुटिरेणु मिलकर एक त्रसरेण होता है। आठ त्रसरेणु मिलकर एक रथरेण होता है आठ रथरेण मिलकर एक देवकुरु उत्तरकुरुके मनुष्यके केशका अग्रभाग होता है। उन आठके मिलनेसे एक रम्यक और हरिवर्षके मनुष्यके केशका अग्रभाग होता है। उन आठके मिलनेसे हैरण्यवत और हैमवत क्षेत्रके मनुष्यके केशका अग्रभाग होता है। उन आठके मिलनेसे भरत, ऐरावत और विदेह क्षेत्रके मनुष्यके केशका अग्रभाग होता है। उन आठके मिलनेसे एक लोख होती है। आठ लीखकी एक जू होतो है। आठ जूंका एक यवमध्य होता है और आठ यवमध्यों ( जौके बीचके भागों) का एक उत्सेधांगुल होता है। . ३१. प्र०-उत्सेधांगुलसे क्या मापा जाता है ?
उ०-उत्सेधांगुलसे देव, नारकी, मनुष्य और तिर्यञ्चोंके शरीरको ऊँचाई, देवोंके निवास स्थान तथा नगरादि और अकृतिम जिनालयकी प्रतिमाओंकी ऊँचाई मापी जाती है।
३२. प्र.-प्रमाणांगुल किसे कहते हैं ?
उ०-उत्सेधांगुलसे पाँच सौ गुना प्रमाणांगुल होता है। यही अवसर्पिणी कालके प्रथम चक्रवर्ती भरतका आत्मांगुल होता है। उस समय उसोसे ग्राम, नगर आदिका माप किया जाता था।
३३. प्र०-प्रमाणांगुलसे क्या मापा जाता है ?
उ०-द्वीप, समुद्र, कुलाचल, वेदो, नदी, कुण्ड, सरोवर और भरत आदि क्षेत्रोंका माप प्रमाणांगुलसे ही होता है।
३४. प्र-आत्मांगुल किसे कहते है ? ३२. त्रि० प्र०, गा० १,११० । ३४. त्रि० प्र०, गा० १,१११ ।
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