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करणानुयोग-प्रवेशिका उनमें एक तीर्थङ्कर प्रकृतिको मिला देनेपर ४२ प्रकृतियां उदययोग्य होती हैं। ६८५. प्र०-तेरहवें गुणस्थानमें उदयव्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी
होती है ? उ०-एक वेदनीय, औदारिक, तैजस, कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिक अंगोपांग, बज्रऋषभ नाराच संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, दो विहायोगतियां, प्रत्येक शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर, निर्माण-इन तीस प्रकृतियोंको उदय व्युच्छित्ति तेरहवें सयोग केवली गुणस्थानमें होती है।
६८६. प्र०-चौदहवें गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ?
उ०-तेरहवें गुणस्थानमें जो ४२ प्रकृतियोंका उदय होता है उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई तीस प्रकृतियोंको घटानेपर शेष रहीं बारह प्रकृतियोंका उदय होता है। ६८७. प्र०-चौदहवें गुणस्थानमें उदयव्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी
होती है ? उ०-एक वेदनीय, मनुष्यायु, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकोति, तीर्थंकर, उच्चगोत्र, इन तेरह प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति अयोगकेवलो गुणस्थानमें होती है।
६८८. प्र०-मिथ्यात्व गणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका सत्त्व होता है ? उ०-एक सौ अड़तालीस प्रकृतियोंका।।
६८९. प्र०-सासादन गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका सत्त्व होता है ? - उ.-एक सौ पैंतालोस प्रकृतियोंका; क्योंकि यहां तीर्थङ्कर प्रकृति, आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग इन तीन प्रकृतियोंको सत्ता नहीं रहती।
६९०. प्र०-मिश्र गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका सत्त्व रहता है ? उ०-तीर्थङ्कर प्रकृतिके बिना १४७ प्रकृतियोंका। ६५१. प्र०-चौथे गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका सत्त्व रहता है ?
उ०-१४८ प्रकृतियोंका। किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टोके १४१ का हो सत्त्व रहता है, अनन्तानुबन्धो क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृतिका सत्व नहीं रहता।
६९२. प्र०-चौथे गुणस्थानमें सत्त्व व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती
उ.-एक नरकायुकी।
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