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________________ करणानुयोग-प्रवेशिका १०१ ६७७. प्र०-नौ गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती उ०-स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध, मान, माया, इन छ प्रकृतियोंको उदय व्युच्छित्ति नौवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें होती है। ६७८. प्र०-दसवें गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ.-नौवें गुणस्थानमें जो ६६ प्रकृतियोंका उदय होता है उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई छै प्रकृतियोंको घटा देनेपर शेष रहीं ६० प्रकृतियोंका उदय होता है। ६७९. प्र०-दसवें गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंको होती उ०-केवल एक संज्वलन लोभकी। ६८० प्र०--ग्यारहवें गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ०-दसवें गुणस्थानमें जो ६० प्रकृतियोंका उदय होता है उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई एक प्रकृतिको घटा देनेपर शेष रहीं ५६ प्रकृतियोंका उदय होता है। ६८१. प्र०-ग्यारहवें गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती है ? उ.- वज्रनाराच और नाराच संहननको उदय व्युच्छित्ति ग्यारहवें उपशान्त कषाय गुणस्थानमें होती है। ६८२. प्र०-बारहवें गणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ०- ग्यारहवें गणस्थान में जो ५६ प्रकृतियोंका उदय होता है उनमेसे व्युच्छिन्न हुई दो प्रकृतियोंको घटा देनेपर शेष रहीं ५७ प्रकृतियोंका उदय होता है। ६८३. प्र०-बारहवें गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्ति कितनी प्रकृतियोंकी होती है ? उ०-निद्रा और प्रचला इन दो प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति क्षीण कषाय गुणस्थानके उपान्त्य समयसे होती है और पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पांच अन्तराय, इन चौदह प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति अन्तिम समयमें होती है। ६८४. प्र० -तेरहवें गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ०-बारहवें गुणस्थानमें जो ५७ प्रकृतियोंका उदय होता है उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई सोलह प्रकृतियोंको घटानेपर ४१ प्रकृतियां शेष रहती हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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