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________________ १०० करणानुयोग-प्रवेशिका उ०-प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, तिर्यञ्चायु, तिर्यञ्चगति, उद्योत, नीच गोत्र इन आठ प्रकृतियों को उदय व्यच्छित्ति पाँचवें देशविरत गुणस्थानमें होती है। ६७०.प्र०-छठे गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ.-पाँचवें गुणस्थानमें ८७ प्रकृतियोंका उदय कहा है। उनमेंसे व्युच्छिन्न प्रकृति आठके घटानेपर शेष रहीं ७६ प्रकृतियोंमें आहारक शरीर और आहारक अंगोपांगको मिलानेसे ८१ प्रकृतियोंका उदय छठे गुणस्थानमें होता है। ६७१. प्र०-छठे गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती उ०-निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगद्धि, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग इन पाँच प्रकृतियोंको उदय व्यच्छित्ति छठे प्रमत्त संयत गुणस्थानमें होती है। ६७२. प्र०-सातवें गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ०-छठे गुणस्थानमें जो ८१ प्रकृतियोंका उदय होता है उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई पाँच प्रकृतियोंको घटानेपर शेष ७६ प्रकृतियोंका उदय होता है। ६७३. प्र०-सातवें गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती है ? उ०-अर्धनाराच, कोलक, असम्प्राप्तासपाटिका संहनन, सम्यक्त्व प्रकृति इन चार प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति सातवें अप्रमत्त संयत गुणस्थानमें होतो है। ६७४. प्र.-आठवें गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ०—सातवें गुणस्थानमें जो ७६ प्रकृतियोंका उदय कहा है, उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई चार प्रकृतियोंको घटानेपर शेष ७२ प्रकृतियोंका उदय होता है। ६७५. प्र०-आठवें गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती है ? उ०-हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा इन छै प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति आठवें अपूर्वकरण गुणस्थानमें होती है। ६७६. प्र०-नौवें गुणस्थानमें उदय कितनी प्रकृतियोंका होता है ? . उ०-आठवें गुणस्थानमें जो ७२ प्रकृतियोंका उदय होता है उनमेंसे ब्युच्छिन्न हुई छै प्रकृतियोंको घटानेपर शेष रहीं ६६ प्रकृतियोंका उदय होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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