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________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका श्रुताभ्यासका प्रश्न हो नहीं उठता। एक शुक्ललेश्या ही होती है । वह नियमसे मुक्त हो जाते हैं। ५२८. प्र०—पाखण्डी निर्ग्रन्थ कितने प्रकारके होते हैं ? उ०-पाखण्डी निर्ग्रन्थ पांच प्रकारके होते हैं--अवसन्न, पार्श्वस्थ, कुशील संसक्त और यथाच्छन्द । ५२९. प्र०—अवसन्न मुनि किसे कहते हैं ? उ०—जिसका चारित्र अशुद्ध है उसे अवसन्न मुनि कहते हैं। अवसन्न मुनि पिछी कमण्डलु आदि उपकरणोंमें आसक्त रहता है, वसति संस्तर आहार वगैरहकी शुद्धि और समितियोंके पालनमें प्रमाद करता है। आवश्यकोंका पालन वचन और कायसे ही करता है, मनसे नहीं करता। ५३०. प्र०—पार्श्वस्थ मुनि किसे कहते हैं ? उ०—जो निरतिचार संयमका पालन नहीं करते उन्हें पार्श्वस्थ मुनि कहते हैं। पार्श्वस्थ मुनि निषिद्ध व्यक्तियोंके यहाँ आहार ग्रहण करते हैं, आहार लेनेसे पहले और पीछे दाताकी प्रशंसा करते हैं, उत्पादन दोष और एषणा दोष सहित आहार लेते हैं, सदा एक ही वसतिकामें रहते हैं और एक ही संथरेपर सोते हैं। गृहस्थोंके घर अपनी बैठक लगाते हैं। गृहस्थोंके उपकरणोंसे शौच आदि क्रिया करते हैं। सूई, कैंची, नख काटनेका अस्त्र, कान का मैल निकालनेका साधन आदिका उपयोग करते हैं। रातमें खूब सोते हैं, संथरा भी बड़ा लगाते हैं, तेल मलवाते हैं, बिना जरूरत हाथ पैर धोते हैं। ५३१. प्र०—कुशील मुनि किसे कहते हैं ? . उ०-कुशील मुनि अनेक प्रकारके होते हैं। जो राजद्वारमें कौतुक दिखाकर लोकप्रिय होनेकी चेष्टा करते हैं, वे कौतुक कुशील हैं। जो अभिमन्त्रित पानी आदिके द्वारा किसीको वशमें करते हैं, वे भूति कुशील हैं। विद्याओंके द्वारा लोंगोंका अनुरंजन करनेवाले प्रसेनिका कुशील कहे जाते हैं । अपनो जाति वगैरह बतलाकर भिक्षा प्राप्त करनेवाले आजीव कुशोल हैं। अनाथशालामें जाकर चिकित्सा करानेवाले भी आजीव कुशील हैं। शाप आदि देनेवाले प्रपातन कुशील हैं। ५३२. प्र०-संसक्त मुनि किसे कहते हैं ? उ.-जो मुनि अवसन्न मुनियोंके संसर्गसे अवसन्न, पार्श्वस्थके संसर्गसे पार्श्वस्थ और कुशीलके संसर्गसे कुशील बन जाते हैं उन मुनियोंको संसक्त मुनि कहते हैं। इनका आचरण नटकी तरह होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003834
Book TitleCharnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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