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________________ ६४ चरणानुयोग-प्रवेशिका ५१९. प्र०-कुशील मुनि किसे कहते हैं ? उ०-कुशील मुनिके दो भेद हैं-प्रतिसेवना कुशील और कषाय कुशील। ५२०. प्र०-प्रतिसेवना कुशील किसे कहते हैं ? उ०-जिनके मूलगुण और उत्तरगुण दोनों पूर्ण होते हैं किन्तु कभी-कभी उत्तर गुणोंमें दोष लग जाता हो उनको प्रतिसेवना कुशील कहते हैं। ५२१. प्र०—प्रतिसेवना कुशील मुनिको अन्य विशेषताएँ क्या हैं ? उ०-प्रतिसेवना कुशील मुनिके सामायिक और छेदोपस्थापना चारित्र होता है। ये कमसे कम पांच समिति और तीन गुप्तियोंके तथा अधिकसे अधिक दसपूर्वके ज्ञाता होते हैं। छहों लेश्याएँ होती हैं और मरकर सोलहवें स्वर्ग तक जन्म लेते हैं। ५२२. प्र०-कषाय कुशील मुनि किसे कहते हैं ? । उ०-जिन्होंने अन्य कषायोंके उदयको तो वश में कर लिया है किन्तु संज्वलनकषायको वशमें नहीं किया है उन मुनियोंको कषाय कुशील कहते हैं । ५२३. प्र०-कषाय कुशीलको अन्य विशेषताएँ क्या हैं ? उ०-कषाय कुशील मुनिके सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसांपराय चारित्र होते हैं। कमसे कम पांच समिति और तोन गुप्तियोंके और अधिकसे अधिक चौदहपूर्वोके ज्ञाता होते हैं। कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल चार लेश्याएँ होती हैं । मरकर सर्वार्थसिद्धि तक जन्म लेते हैं । ५२४. प्र०-निर्ग्रन्थ मुनि किन्हें कहते हैं ? उ०--जिनके मोहनीय कर्मका तो उदय ही नहीं है और शेष घातिया कर्मोंका भो उदय ऐसा है जैसे जलकी लकोर तथा अन्तर्मुहूर्तके बाद ही जिन्हें केवलज्ञान प्रकट होनेवाला है उन्हें निर्ग्रन्थ कहते हैं। ५२५. प्र०—निर्ग्रन्थको अन्य विशेषताएँ क्या हैं ? उ०-निर्ग्रन्थके एक यथाख्यातचारित्र ही होता है। वे कमसे कम पांच समिति और तीन गुप्तियोंके और अधिकसे अधिक चौदहपूर्वोके ज्ञाता होते हैं। उनके एक शुक्ल लेश्या हो होती है। ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती निर्ग्रन्थ मरकर सर्वार्थसिद्धि विमान तक जन्म लेते हैं। ५२६. प्र०-स्नातक किसे कहते हैं ? उ०—जिनके घातिया कर्म नष्ट हो गये हैं ऐसे केवलियोंको स्नातक कहते हैं। ५२७. प्र०-स्नातकको अन्य विशेषताएँ क्या है ? उ.-स्नातकके एक यथाख्यातसंयम ही होता है। केवलज्ञानो होनेसे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003834
Book TitleCharnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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