________________
चरणानुयोग-प्रवेशिका ..... उ०-फिर योगो आकाशमें विचरते हुए वेगशाली वायुमण्डलका चिन्तन करता है। फिर ऐसा चिन्तन करता है कि वह वायुमण्डल शरीर वगैरहके भस्मको उड़ाकर शान्त हो गया है यह मारुती धारणा है। .४९७. प्र०-वारुणी धारणाका क्या स्वरूप है ?
उ०---फिर वह ध्यानी मेघोंसे भरे हुए आकाशका ध्यान करता है। फिर उनको बरसते हुए विचारता है। फिर जलके प्रवाहसे आकाशको बहाते हुए वरुण मण्डलका चिन्तन करता है। फिर वह विचारता है कि वह वरुणमण्डल शरीरके जलनेसे उत्पन्न हुई समस्त भस्मको धो देता है। यह वारुणो धारणा
४९८. प्र०-तत्त्वरूपवती धारणाका क्या स्वरूप है ?
उ०-फिर वह योगो सिंहासनपर विराजमान, देव दानवोंसे पूजित सर्वज्ञके समान अपने आत्माका चिन्तन करता है। फिर आठ कर्मोंसे रहित निर्मल पुरुषाकार अपने आत्मा का चिन्तन करता है। यह तत्त्वरूपवतो धारणा है।
४९९. प्र०-पदस्थध्यान किसे कहते हैं ?
उ०—पवित्र मंत्रोंके अक्षररूप पदोंका अवलम्बन लेकर जो ध्यान किया जाता है वह पदस्थध्यान है।
५००. प्र०-ध्यानके योग्य मंत्राक्षर कौनसे हैं ?
उ.---पंच परमेष्ठीका वाचक पंच नमस्कार मंत्र, 'अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः' यह सोलह अक्षरोंका मंत्र, 'अरहन्त सिद्ध' यह छै अक्षरोंका मंत्र' 'ओं हाँ ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः अ सि आ उ सा नमः' पाँच तत्त्वोंसे युक्त यह पञ्चाक्षरो मंत्र, 'अरहन्त' यह चार अक्षरका मंत्र, 'सिद्ध' यह दो अक्षरका मंत्र तथा अन्य भी अनेक मंत्र ध्यानके योग्य हैं।
५०१. प्र०-रूपस्थध्यान किसे कहते हैं ?
उ०-जिस ध्यानमें समवसरण आदि महिमासे युक्त अरहन्तके स्वरूपका चिन्तन किया जाता है उसे रूपस्थध्यान कहते हैं।
५०२. प्र० - रूपातीतध्यान किसे कहते हैं ?
उ०-जिस ध्यानमें शुद्ध चिदानन्दमय, पुरुषाकार और लोकके अग्रभाग में स्थित आत्माका ध्यान किया जाता है उसे रूपातोतध्यान कहते हैं।
५०३. प्र०-धर्मध्यान किसके होता है ?
उ०-चौथे, पांचवें, छठे और सातवें गुणस्थानवाले जीवोंके ही धर्मध्यान होता है। ..५०४. प्र० -शुक्लध्यान किसे कहते हैं ?
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org