________________
चरणानुयोग-प्रवेशिका ४९०. प्र०-अपायविचय धर्मध्यान किसे कहते हैं ?
उ०-जो लोग मोक्षके अभिलाषी होते हुए भी कुमार्गमें पड़े हुए हैं, उनका विचार करना कि वे मिथ्यात्वसे कैसे छूटें अपायविचय है।
४९१. प्र०-विपाकविचय किसे कहते हैं ? उ०-कर्मोके फल का विचार करना विपाकविचय धर्म्यध्यान है। ४९२. प्र०-संस्थानविचय धर्मध्यान किसे कहते हैं ?
उ०-लोकके आकार तथा उसकी दशाका विचार करना संस्थानविचय है।
४९३. प्र०-पिण्डस्थध्यान किसे कहते हैं ?
उ०-जिसमें पार्थिवी. आग्नेयी, मारुती, वारुणी और तत्त्वरूपवतो, इन पाँच धारणाओंका चिन्तन किया जाता है उसे पिण्डस्थध्यान कहते हैं।
४९४. प्र.-पार्थिवी धारणाका क्या स्वरूप है ?
उ०—इसमें प्रथम हो योगी एक शान्त क्षीरसमुद्रका ध्यान करता है । फिर उसके मध्यमें एक सहस्रदल कमलका ध्यान करता है। फिर उस कमलके मध्यमें एक कणिकाका चिन्तन करता है। फिर उस कणिकापर एक श्वेत सिंहासनका चिन्तन करता है। फिर उस सिंहासनपर सुखपूर्वक बैठे हुए अपने आत्माका चिन्तन करता है । यह पार्थिवी धारणा है ।
४९५. प्र०-आग्नेयो धारणाका क्या स्वरूप है ?
उ०-उसके पश्चात् योगी अपने नाभि मण्डलमें सोलह पत्रोंके एक कमलका ध्यान करता है। फिर उस कमलको कणिका पर 'ह' मंत्रका और सोलह पत्रों पर अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः इन सोलह अक्षरोंका चिन्तन करता है। फिर 'ह' के रेफसे निकलती हुई धूमका चिन्तन करता है। फिर उसमें से निकलते हुए फुलिंगोंका और फिर ज्वालाको लपटोंका चिन्तन करता है। फिर उस ज्वालासे अपने हृदयमें स्थित कमलको निरन्तर जलता हुआ चिन्तन करता अर्थात् हृदयमें स्थित कमलके आठ पत्र हों और उन आठों पत्रों पर आठकर्म स्थित हों। उस कमलके नाभिमें स्थित कमलकी कर्णिकापर विराजमान 'ह' मंत्रके रेफसे उठी हुई ज्वाला निरन्तर जलातो है ऐसा चिन्तन करता है। उस कमलके भस्म होनेके पश्चात् शरीरके बाहर बड़वानलके समान धधकती हुई त्रिकोण अग्निका चिन्तन करता है । फिर यह अग्निमण्डल उस नाभिमें स्थित कमलको और शरीरको जलाकर धोरे-धीरे शान्त हो जाता है ऐसा चिन्तन करता है । यह आग्नेयो धारणा है ।
४९६. प्र०-मारुती धारणा किसे कहते हैं ?
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org