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चरणानुयोग-प्रवेशिका इसीसे व्युत्सर्ग के दो भेद हैं-एक बाह्योपधिव्युत्सर्ग और एक अभ्यन्तरोपधि पुत्सर्ग। ४७२. प्र०-व्युत्सर्ग तप कौन करता है ?
उ०-जो योगी तीन गुप्तियोंका पालन करता हआ आत्माको शरीरसे भिन्न देखता है और अपने शरीरसे भो निस्पृह है वही व्युत्सर्ग तपको करता है।
४७३. प्र०-अभ्यन्तरोपधिव्युत्सर्ग किसे कहते हैं ?
उ०-वैसे तो क्रोध आदि कषायोंके त्यागको अभ्यन्तरोपधिव्युत्सर्ग कहते हैं । किन्तु कुछ समयके लिए अथवा जीवन पर्यन्तके लिए कायका त्याग करना भी अभ्यन्तरोपधिव्युत्सर्ग है। ४७४. प्र०-जीवन पर्यन्त कायत्याग अथवा समाधिमरणके कितने
भेद हैं ? उ०-तीन भेद हैं-भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण और प्रायोपगमनमरण।
४७५. प्र०-भक्तप्रत्याख्यानमरण किसे कहते हैं ?
उ०—जिसमें समाधिकी कामनासे भोजनको त्याग दिया जाता है उसे भक्तप्रत्याख्यानमरण कहते हैं। भक्तप्रत्याख्यानका जघन्यकाल अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्टकाल बारह मूहर्त है। ४७६. प्र०-इंगिनीमरण किसे कहते हैं ?
उ०-जिस समाधिमरणमें साधु अपनी वैयावृत्य स्वयं तो करता है किन्तु दूसरोंसे नहीं कराता उसे इंगिनोमरण कहते हैं।
४७७. प्र०-प्रायोपगमनमरण किसे कहते हैं ?
उ०-जिस समाधिमरणमें मुनि अपनो वैयावृत्य न स्वयं करते हैं और न दूसरोंसे कराते हैं उसे प्रायोपगमन या प्रायोपवेशन कहते हैं।
४७८. प्र०-ध्यान किसे कहते हैं ? ___ उ०-अपने चित्तको वृत्तिको सब ओरसे रोककर एक ही विषयमें लगाना ध्यान है।
४७९. प्र.-ध्यानके कितने भेद हैं ?
उ०-ध्यानके दो भेद हैं-अशुभ ध्यान और शुभ ध्यान । अशुभ ध्यानके दो भेद हैं-आर्त और रौद्र तथा शुभ ध्यानके दो भेद हैं-धर्मध्यान और शुक्लध्यान ।
४८०. प्र०-आर्तध्यानके कितने भेद हैं ?
उ०-आर्तध्यानके चार भेद हैं-अनिष्टसंयोग, इष्ट वियोग, वेदना और निदान।
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