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चरणानुयोग-प्रवेशिका जिस स्थान में बैठे उस स्थानमें बहुत अधिक व्यक्ति भी यदि आकर बैठें तो भी स्थानकी कमी न पड़े यह अक्षीण-महालयऋद्धि है।
४५९ प्र०- स्वाध्याय तप किसे कहते हैं ? उ.-आत्महित करनेवाले शास्त्रोंके अध्ययनको स्वाध्याय कहते हैं। ४६०. प्र०-स्वाध्याय तपके कितने भेद हैं ?
उ०-स्वाध्यायके पाँच भेद हैं-वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश। ४६१. प्र०-वाचना स्वाध्याय किसे कहते हैं ?
उ०-धर्मके इच्छक सुपात्रोंको शास्त्र देना, शास्त्रका अर्थ बतलाना अथवा शास्त्र भी देना और उसका अर्थ भी बतलाना वाचना स्वाध्याय है।
४६२. प्र०-पृच्छना स्वाध्याय किसे कहते हैं ?
उ०-संशयको दूर करनेके लिये अथवा ज्ञानविषयका निर्णय करनेके लिये विशिष्ट ज्ञानियोंसे प्रश्न करना पृच्छना है।
४६३. प्र०-अनुप्रेक्षा स्वाध्याय किसे कहते हैं ? उ.-जाने हुए अर्थका बार-बार विचार करना अनुप्रेक्षा स्वाध्याय है। ४६४. प्र०-आम्नाय स्वाध्याय किसे कहते है ? उ० - शुद्धतापूर्वक पाठ करना आम्नाय स्वाध्याय है। ४६५. प्र०-धर्मोपदेश स्वाध्याय किसे कहते हैं ? उ०-धर्मकथा करना धर्मोपदेश स्वाध्याय है। ४६६. प्र०-धर्मकथाके कितने भेद हैं ?
उ०-धर्मकथाके चार भेद हैं-आक्षेपणो, विक्षेपणो, संवेदनी और निर्वेदनी।
४६७. प्र०-आक्षेपणीकथा किसे कहते हैं ?
उ०-स्वमत ( अनेकान्त मत ) का निरूपण करनेवालो कथाको आक्षेपणी कथा कहते हैं।
४६८. प्र०-विक्षेपणोकथा किसे कहते हैं ? उ०-परमतका खण्डन करनेवाली कथाको विक्षेपणोकथा कहते हैं। ४६९. प्र०-संवेदनीकथा किसे कहते हैं ? उ०-पुण्यका फल बतलानेवाली कथाको संवेदनोकथा कहते हैं। ४७०. प्र०-निवेदनीकथा किसे कहते हैं ? उ०-संसारसे वैराग्य उत्पन्न करानेवालो कथाको निर्वेदनोकथा कहते हैं। ४७१ प्र०-व्युत्सर्ग तप किसे कहते हैं ? । उ०-बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रहके त्यागको व्युत्सर्ग तप कहते हैं।
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