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________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका रहना घोर पराक्रमऋद्धि है। ब्रह्मचर्यको धारण करते हुए स्वप्नमें भी दूषण न लगना धोर ब्रह्मचर्यऋद्धि है । ४५५. प्र-बलऋद्धि किसे कहते हैं ? उ०-मन, वचन और कायके भेदसे बलऋद्धिके तीन प्रकार हैं-अन्तमुहूर्तमें समस्त श्रुतका अर्थ चिन्तन करनेकी शक्तिका होना, मनोबलऋद्धि है। अन्तर्मुहूर्तमें सकल श्रुतका उच्चारण करनेको सामर्थ्य होना वचनबलऋद्धि है। मासिक, चातुर्मासिक, वार्षिक प्रतिमायोग धारण करते हुए भी शरीरका खेदखिन्न न होना कायबलऋद्धि है। ४५६. प्र०-औषधऋद्धि किसे कहते हैं ? उ० -औषधऋद्धिके आठ प्रकार हैं-तपस्वो मुनिके हस्तचरण आदिके स्पर्शसे हो सब रोगोंका दूर हो जाना आमर्षऔषधिऋद्धि है। थूक वगैरहके स्पर्शसे हो रोगोंका मिट जाना क्षेलौषधिऋद्धि है। तपस्वो मुनिके कर्ण आदिके मलका सर्वरोगनाशक हो जाना मलौषधिऋद्धि है। मलमूत्रका औषधरूप हो जाना विडौषधिऋद्धि है। अंग उपांगके स्पर्श हो रोगोंका दूर हो जाना सवौषधिऋद्धि है। तोव विष मिश्रित आहारका भी तपस्वी मुनिके मुखमें जानेपर विष रहित हो जाना अथवा तपस्वो मुनिके वचनोंके प्रभावसे विष उतर जाना आस्याविष ऋद्धि है । तपस्वो मुनिके देखने मात्रसे हो किसो के विषका उतर जाना दृष्टिविषऋद्धि है । ये सब औषध ऋद्धियाँ हैं । ४५७. प्र०-रसऋद्धि किसे कहते हैं ? उ०-रसऋद्धिके छै भेद हैं--प्रकृष्ट तपस्वी क्रोधमें आकर यदि किसीसे कहे तू मर जा और वह तत्काल विष चढ़कर मर जाये यह आस्यविषरस ऋद्धि है। प्रकृष्ट तपस्वी क्रुद्ध होकर किसीकी ओर देखे और वह विष चढ़कर मर जाये यह दृष्टिविषरसऋद्धि है। प्रकृष्ट तपस्वोके हाथमें रखा हुआ विरस भोजन भो क्षीररसरूप हो जाये अथवा जिनके वचन प्राणियोंको क्षीरकी तरह पुष्टिदायक हों वह क्षीररसऋद्धि है। इसी तरह मध्वास्रवीरसऋद्धि ( मिष्ट रस रूप हो जाये ), घृतास्रवीरसऋद्धि (घृतरसरूप परिणमन करे ) और अमृतास्रवीरसऋद्धि ( अमृतरसरूप परिणमन करे ) जाननो चाहिये। ४५८. प्र०-क्षेत्रऋद्धि किसे कहते हैं ? उ०-क्षेत्रऋद्धिके दो भेद हैं-एक अक्षीण-महानसऋद्धि और एक अक्षीण-महालयऋद्धि । तपस्वी मुनिको जिस बरतनमेंसे भोजन दिया जाये उस बरतनमेंसे यदि चक्रवर्तीको सेनाको भी जिमाया जाये तो उस दिन भोजनको सामग्री नहीं घटे, यह अक्षीण-महानसऋद्धि है। ऋद्धिधारो मुनि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003834
Book TitleCharnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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