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चरणानुयोग-प्रवेशिका होनेवाले हाथी, घोड़ा, ऊंट आदिके शब्दोंको तपोविशेषके बलसे अलग-अलग जान लेना संभिन्नश्रोतृत्वऋद्धि है।
४३९. प्र०-अष्टांग-महानिमित्तता ऋद्धि किसे कहते हैं ?
उ०-अन्तरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न और स्वप्न ये आठ महानिमित्त हैं जिनसे भूत, भविष्य का शभाशुभ जाना जाता है। इन आठ महानिमित्तोंका ज्ञाता होना अष्टांग-महानिमित्तताऋद्धि है ।
४४०. प्र.-अन्तरिक्ष-निमित्त-ज्ञान किसे कहते हैं
उ०-सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र आदिको देखकर शुभाशुभ फलका जानना अन्तरिक्ष-महानिमित्त-ज्ञान है।
४४१. प्र०-भोम-निमित्तज्ञान किसे कहते हैं ?
उ०-पृथ्वीकी कठोरता, कोमलता, रूक्षता आदि देखकर शुभाशुभ जान लेना और पृथ्वीके अन्दर स्थित सोना-चांदो वगैरहको स्पष्ट जान लेना भौम निमित्त-ज्ञान है।
४४२. प्र०-अंग-निमित्तज्ञान किसे कहते हैं ? उ०-अंग-उपांग वगैरहको देखकर त्रिकालभावी सुख दुःखको जान लेना अंग निमित्त-ज्ञान है।
४४३. प्र०–स्वरनिमित्तज्ञान किसे कहते हैं ?
उ०-शुभ अथवा अशुभ शब्दको सुनकर इष्ट अनिष्ट फलको जान लेना स्वरनामा निमित्तज्ञान है।
४४४. प्र०-व्यंजन निमित्तज्ञान किसे कहते हैं ?
उ०-सिर, मुख, गर्दन वगैरहमें तिल, लहसुन आदिको देखकर त्रिकाल सम्बन्धी शुभाशुभको जान लेना व्यंजन-निमित्तज्ञान है।
४४५. प्र० - लक्षण-निमित्तज्ञान किसे कहते हैं ?
उ०-शरीरमें श्रीवृक्ष, स्वस्तिक, कलश, आदि चिह्नोंको देखकर पुरुषके सम्मान, ऐश्वर्य आदिको जान लेना लक्षण-निमित्तज्ञान है।
४४६. प्र०-छिन्न-निमित्तज्ञान किसे कहते हैं ?
उ०-वस्त्र, शस्त्र, छत्र, जूता आदिको किसीके द्वारा काटा फाटा देखकर त्रिकाल सम्बन्धो शुभाशुभको जान लेना छिन्न-निमित्तज्ञान है ।
४४७. प्र० -स्वप्न-निमित्तज्ञान किसे कहते हैं ?
उ०-वात, पित्त और कफके दोषसे रहित पुरुष रात्रिके पिछले पहरमें चन्द्रमा, सूर्य, पृथ्वी वगैरहको समुद्रके मुखमें प्रवेश करता हुआ देखे तो स्वप्न शुभ सूचक है और अपने शरीरको घो, तेल वगैरहसे लिप्त देखे या अपनेको
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