SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका ४२६. प्र० - ऋषि किसे कहते हैं ? उ०- ऋद्धिधारी श्रमणों को ऋषि कहते हैं । ४२७. प्र० - ऋषि कितने प्रकारके हैं ? उ०- ऋषि चार प्रकार के होते हैं- राजर्षि, ब्रह्मर्षि, देवर्षि और परमर्षि । ४२८. प्र० - राजर्षि किसे कहते हैं ? उ० - विक्रियाऋद्धि और अक्षीणऋद्धिके धारी श्रमणों को राजर्षि कहते हैं । ४२९. प्र० - ब्रह्मर्षि किसे कहते हैं ? उ०- बुद्धिऋद्धि और औषधऋद्धिके धारी श्रमणोंको ब्रह्मर्षि कहते हैं । ४३०. प्र० - देवर्ष किसे कहते हैं ? उ०- आकाशगमन ऋद्धिके धारी श्रमणोंको देवर्षि कहते हैं ? ४३१. प्र०— परमर्षि किसे कहते हैं ? - केवलज्ञानियोंको परमर्षि कहते हैं । ४३२. प्र० - ऋद्धि कितने प्रकारकी होती हैं ? -02 ५३ उ०—ऋद्धि आठ प्रकारकी होती हैं - बुद्धिऋद्धि, क्रियाऋद्धि, विक्रियाऋद्धि, तपऋद्धि, बलऋद्धि, औषधऋद्धि, रसऋद्धि और क्षेत्रऋद्धि । ४३३. प्र०- - बुद्धिऋद्धि किसे कहते हैं ? उ०- बुद्धि कहते हैं ज्ञानको । ज्ञानविषयक ऋद्धिको बुद्धिऋद्धि कहते हैं । ४३४ प्र० - बुद्धिऋद्धिके कितने भेद हैं ? उ०- बीजबुद्धि, कोष्ठबुद्धि, पदानुसारित्व, संभिन्न श्रोतृत्व, अष्टांगमहानिमित्तता, प्रज्ञा श्रमणत्व, प्रत्येकबुद्धता आदि अट्ठारह भेद हैं ? ४३५. प्र० - बीजबुद्धिऋद्धि किसे कहते हैं ? उ०- जैसे उत्तम खेत में बोये गये एक बीजसे अनेक बीज उत्पन्न होते हैं वैसे ही ज्ञानावरण कर्मका विशेष क्षयोपशम होनेपर एक बीज पदको लेकर उसके अनेक अर्थोंको जाननेमें कुशल होना बोजबुद्धिऋद्धि है । ४३६. प्र० - कोष्ठबुद्धिऋद्धि किसे कहते हैं ? Jain Educationa International उ०- जैसे कोठे में बहुत सा धान्य बीज परस्पर में रिले मिले बिना सुरक्षित रहता है वैसे ही परोपदेशके द्वारा ग्रहण किये बहुतसे शब्द अर्थ और बीजका बुद्धिमें जैसे तैसा व्यवस्थित रहना कोष्ठबुद्धिऋद्धि है । ४३७. प्र० - पदानुसारित्वऋद्धि किसे कहते हैं ? उ०- ग्रन्थ के आदि, मध्य अथवा अन्तका एकपद सुनकर समस्त ग्रन्थ व अर्थका अवधारण करना पदानुसारित्व ऋद्धि है । ४३८. प्र० - सम्भिन्नश्रोतृत्वऋद्धि किसे कहते हैं ? उ०- चक्रवर्तीके बारह योजन लम्बे और नौ योजन चौड़े कटकमें उत्पन्न For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003834
Book TitleCharnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy