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चरणानुयोग-प्रवेशिका किसीका श्रद्धान विचलित होने लगे तो उनके रोगका इलाज करना, उनका संकट दूर करना और उपदेश आदिके द्वारा उनके श्रद्धानको दृढ़ करना वैयावृत्य है।
४१३. प्र.-आचार्य किसे कहते हैं ?
उ०—जिनके पास जाकर सब श्रमण व्रताचरण करते हैं उन्हें आचार्य कहते हैं।
४१४. प्र०-उपाध्याय किसे कहते हैं ?
उ०—जिनके पास जाकर श्रमणगण शास्त्राभ्यास करते हैं उनको उपाध्याय कहते हैं।
४१५. प्र०-तपस्वी किसे कहते हैं ? उ०-जो श्रमण बहुत व्रत उपवास आदि करते हैं उन्हें तपस्वी कहते हैं। ४१६. प्र०-शैक्ष किसे कहते हैं ? उ०-जो श्रमण शास्त्रका अभ्यास करते हैं उन्हें शैक्ष कहते हैं । ४१७. प्र०-ग्लान किसे कहते हैं ? उ.-रोगी श्रमणोंको ग्लान कहते हैं। ४१८. प्र०-गण किसे कहते हैं ? उ०-वृद्ध श्रमणोंकी परम्पराके साधुओंको गण कहते हैं। ४१९. प्र०-कुल किसे कहते हैं ? उ०-दीक्षा देनेवाले आचार्यको शिष्य परम्पराको कुल कहते हैं। ४२०. प्र०-संघ किसे कहते हैं ?
उ०-अनगार, यति, मुनि और ऋषिके भेदसे चार प्रकारके श्रमणोंके समूहको संघ कहते हैं अथवा मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविकाके समूहको संघ कहते हैं।
४२१. प्र०-साधु किसे कहते हैं ? उ०-बहुत समयके दीक्षित श्रमणको साधु कहते हैं ? ४२२. प्र०-मनोज्ञ किसे कहते हैं ? उ०-लोकपूजित श्रमणको मनोज्ञ कहते हैं। ४२३. प्र०-अनगार किसे कहते हैं ? उ.-सामान्य श्रमणों को अनगार कहते हैं । ४२४. प्र०-यति किसे कहते हैं ? उ०-उपशमश्रेणि या क्षपकश्रेणिपर आरूढ़ श्रमणोंको यति कहते हैं। ४२५. प्र.--मुनि किसे कहते हैं ? उ०-अवधिज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी श्रमणोंको मुनि कहते हैं।
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