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चरणानुयोग-प्रवेशिका ३८७. प्र०-छन्न दोष किसे कहते हैं ?
उ०—दोष निवेदन करनेसे पहले गुरुसे पूछना कि महाराज ! यदि कोई इस प्रकारका दोष करे तो उसका क्या प्रायश्चित्त होता है, वह छन्न दोष है।
३८८. प्र०-शब्दाकुलित दोष किसे कहते हैं ?
उ०-प्रतिक्रमणके दिन जब बहुतसे साधु एकत्र हुए हों और खूब हल्ला हो रहा हो, उस समय अपने दोषका निवेदन करना कि कोई सुन न सके, शब्दाकुलित दोष है।
३८९. प्र०-बहुजन दोष किसे कहते हैं ?
उ०-गुरुने जो प्रायश्चित्त दिया है वह उचित है या नहीं, ऐसी आशंकासे अन्य साधओंसे पूछना बहजन दोष है।
३९०. प्र०-अव्यक्त दोष किसे कहते हैं ?
उ०-गुरुसे दोष न कहकर अपने सहयोगी अन्य साधुओंसे अपना दोष कहना अव्यक्त दोष है।
३९१. प्र०-तत्सेवित दोष किसे कहते हैं ?
3०-गुरुसे प्रमादका निवेदन न करके जिस साधुने अपने समान अपराध किया हो उससे प्रायश्चित्त ग्रहण करना तत्सेवित दोष है।
३९२. प्र०-प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त किसे कहते हैं ?
उ०—प्रमादसे जो दोष मुझसे हुआ वह मिथ्या हो, इस तरह अपने किये हुए दोषके विरुद्ध अपनी मानसिक प्रतिक्रियाको प्रकट करना प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त है।
३९३. प्र०-तदुभय प्रायश्चित्त किसे कहते हैं ?
उ०- आलोचना और प्रतिक्रमण दोनोंके करनेको तदुभय प्रायश्चित्त कहते हैं।
३९४. प्र०-विवेक प्रायश्चित्त किसे कहते हैं ? ।
उ०-सदोष आहार तथा उपकरण आदिका संसर्ग होनेपर उसका त्याग कर देना विवेक प्रायश्चित्त है।
३९५. प्र०-व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त किसे कहते हैं ? उ०-कुछ समयके लिये ध्यानपूर्वक कायोत्सर्ग करना व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त
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३९६. प्र०-तप प्रायश्चित्त किसे कहते हैं ? ___उ०-अपराधी साधु दोषोंकी विशुद्धिके लिये जो अनशन आदि करता है उसे तप प्रायश्चित्त कहते हैं। ..३९७. प्र०-छेद प्रायश्चित्त किसे कहते हैं ?
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