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चरणानुयोग- प्रवेशिका
३७७. प्र० -- प्रायश्चित्ततप किसे कहते हैं ?
उ०- अवश्य करने योग्य आवश्यक आदिके न करनेपर और त्यागने योग्य क्रियाके न त्यागने पर जो दोष लगता है उसको शुद्धि करनेका नाम प्रायश्चित्त है । 'प्रायः' अर्थात् अपराधको 'चित्त' अर्थात् शुद्धिका नाम प्रायश्चित्ततप है ।
३७८. प्र०-० - प्रायश्चित्तके कितने भेद हैं ?
उ०- प्रायश्चित्तके दस भेद हैं-आलोचना, प्रतिक्रमण, उभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, मूल, परिहार और श्रद्धान ।
३७९ प्र० -- आलोचना प्रायश्चित्त किसे कहते हैं ?
- आचार्य के लिए विनयपूर्वक दस दोषोंको बचाकर अपने प्रमादका निवेदन करना आलोचना प्रायश्चित्त है ।
उ०
३८०. प्र० -- आलोचना कब और कैसे करना चाहिए ?
उ०- प्रातःकाल अथवा मध्याह्नकालमें योग्य स्थानपर साधुको अपना पूरा दोष बालककी तरह सरलभावसे तीनबार आचार्य के सम्मुख कहना चाहिये ।
३८१. प्र० - आलोचनाके दस दोष कौनसे हैं ?
उ०- आकम्पित, अनुमापित, दृष्ट, बादर, सूक्ष्म, छन्न, शब्दाकुल, बहुजन, अव्यक्त और तत्सेवित ये आलोचनाके दस दोष हैं ?
३८२. प्र० - आकम्पित दोष किसे कहते हैं ?
उ०- महाप्रायश्चित्तके भयसे आचार्यको उपकरण आदि देकर अपने दोषका निवेदन करना आकम्पित दोष है ।
३८३. प्र० – अनुमापित दोष किसे कहते हैं ?
-
उ०- गुरुके आगे अपनी असामर्थ्यं बतलाकर और फिर अनुमानसे यह जानकर कि गुरु मुझे थोड़ा सा ही प्रायश्चित्त देंगे, अपने दोषका निवेदन करना अनुमापित दोष है ।
३८४. प्र० - दृष्ट दोष किसे कहते हैं ?
उ०- जो दोष किसीने करते नहीं देखा उसे छिपा जाना और जो दोष
करते देख लिया हो उसे गुरुसे निवेदन करना दृष्ट दोष है ।
३८५. प्र० - बादर दोष किसे कहते हैं ?
उ०- केवल स्थूल दोषका निवेदन करना बादर दोष है ।
३८६. प्र० - सूक्ष्म दोष किसे कहते हैं ?
उ०- महान् प्रायश्चित्तके भयसे महान् दोषको छिपा लेना और छोटे दोषका निवेदन करना सूक्ष्म दोष है ।
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