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चरणानुयोग-प्रवेशिका करना दशम अर्थात् चार उपवास हैं और भोजनकी बारह बेलाओंमें भोजनका त्याग करना द्वादशम अर्थात् पाँच उपवास हैं।
३६८. प्र०-अनवधतकाल अनशनतप किसे कहते हैं ?
उ०-जीवन पर्यन्तके लिये जो भोजनका त्याग किया जाता है उसे अनवधृत काल अनशनतप कहते हैं।
३६९. प्र०–अवमौदर्यतप किसे कहते हैं ?
उ०-एक हजार चावल प्रमाण एक ग्रास होता है। पुरुषका स्वाभाविक आहार बत्तीस ग्रास और स्त्रीका स्वाभाविक आहार अट्ठाईस ग्रास प्रमाण होता है। इससे कम आहार करना अवमौदर्यतप है।
३७०. प्र० --वृत्तिपरिसंख्यानतप किसे कहते हैं ?
उ०—भिक्षाके समय निकलते समय घरों वगैरहका नियम करना कि मैं आहारके लिए इतने घर जाऊँगा अथवा अमुक रीतिसे आहार मिलेगा तो लूंगा। इस प्रकारके नियमको वृत्तिपरिसंख्यानतप कहते हैं ।
३७१. प्र०-रसपरित्यागतप किसे कहते हैं ?
उ०-इन्द्रियोंके दमनके लिए, निद्रापर विजय पानेके लिए तथा सुखपूर्वक स्वाध्याय करनेके लिए घो, दूध, दही, तेल, मीठा और नमकका यथायोग्य त्याग करना रसपरित्याग तप है।
३७२. प्र०--विविक्तशय्यासनतप किसे कहते हैं ?
उ०-ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, ध्यान आदिको सिद्धिके लिए एकान्त स्थानमें शयन करना तथा आशन लगाना विविक्तशय्यासनतप है।
३७३. प्र०-कायक्लेशतप किसे कहते हैं ?
उ०-कष्ट सहनेके अभ्यासके लिए, आरामतलबीकी भावनाको दूर करने के लिए और धर्मको प्रभावनाके लिए ग्रीष्मऋतुमें पर्वतके शिखरपर, वर्षाऋतु में वृक्षके नीचे और शीत ऋतुमें खुले हुए मैदानमें ध्यान लगाना तथा वीरासन, शवासन आदि अनेक प्रकारके आसन लगाना कायक्लेशतप है।
३७४ प्र०-कायक्लेशतपमें और परीषहमें क्या अन्तर है ? उ०-कायक्लेश स्वयं किया जाता है और परीषह अचानक आ जाती है । ३७५. प्र०-अनशन आदि बाह्यतप क्यों हैं ?
उ०-इन तपोंका पता लग जाता है कि मुनिराज तप कर रहे हैं इसलिए इन्हें बाह्यतप कहते हैं।
३७६. प्र०-अभ्यन्तरतप कौनसे हैं ?
उ०-अभ्यन्तरतप छै हैं-प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान।
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