________________
चरणानुयोग-प्रवेशिका उ०-अत्यन्त सूक्ष्म कषायके होनेसे सूक्ष्म साम्पराय नामक दसवें गुणस्थानमें जो चारित्र होता है उसे सूक्ष्म साम्पराय चारित्र कहते हैं ? ।
३६१. प्र०-यथाख्यात चारित्र किसे कहते हैं ?
उ०—समस्त मोहनीय कर्मके उपशमसे अथवा क्षयसे जैसा आत्माका निर्विकार स्वभाव है वैसा ही स्वभाव हो जाना यथाख्यात चारित्र है। इसीसे इसे तथाख्यात भी कहते हैं क्योंकि जैसा आत्माका स्वभाव है वैसा ही इस चारित्रका स्वरूप है। इसे अथाख्यात भी कहते हैं। क्योंकि अथ शब्दका अर्थ अनन्तर है और यह समस्त मोहनीय कर्म के क्षय अथवा उपशमके अनन्तर ही होता है।
३६२. प्र०–तपके कितने भेद हैं ? उ०—तपके दो भेद हैं - बाह्यतप और अभ्यन्तरतप । ३६३. प्र०-बाह्यतपके कितने भेद हैं ?
उ०-बाह्यतपके छै भेद हैं-अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन और कायक्लेश ।
३६४. प्र०-अनशनतप किसे कहते हैं ?
उ०-ख्याति, पूजा, मन्त्रसिद्धि वगैरह लौकिक फलकी अपेक्षा न करके संयमको सिद्धि, रागका उच्छेद, कर्मोका विनाश, ध्यान तथा स्वाध्यायकी सिद्धिके लिये भोजनका त्याग अनशनतप है।
३६५. प्र०-अनशनतपके कितने भेद हैं ?
उ०-अनशनतपके दो भेद हैं-एक अवधूतकाल और एक अनवधृत काल।
३६६. प्र०-अवधूतकाल अनशनतप किसे कहते हैं ?
उ०-समयकी मर्यादा करके जो अनशन किया जाता है वह अवधृतकाल अनशनतप है । जैसे-दिनमें एक बार भोजन करना और एक बार भोजन न करना या चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादश आदि उपवास करना।
३६७. प्र.-चतुर्थ षष्ठ आदि उपवाससे क्या मतलब है ?
उ०-एक दिनमें भोजनकी दो बेला होतो हैं। अतः उपवास धारण करने के दिन एक बेला और उपवासकी पारणाके दिन एक बेला तथा उपवासके दिन दो बेला इस तरह भोजनकी चार बेलाओंमें भोजनका त्याग करना चतुर्थ अर्थात् एक उपवास है। इसी तरह भोजनको छै बेलाओंमें भोजनका त्याग करना षष्ठ अर्थात् दो उपवास है । भोजनको आठ बेलाओंमें भोजनका त्याग करना अष्टम अर्थात् तीन उपवास हैं। भोजनकी दस बेलाओंमें भोजनका त्याग
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org