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चरणानुयोग-प्रवेशिका २९५. प्र०-उपेक्षा संयम किसे कहते हैं ?
उ०-मन, वचन और कायकी प्रवृत्तिका निग्रह करनेवाले और तीन गुप्तियोंके पालक साधुका राग और द्वेषसे निर्लिप्त होना उपेक्षा संयम है।
२९६. प्र०-अपहृत संयम किसे कहते हैं ?
उ०-अपहृत संयमके तीन भेद हैं-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । किसी प्राणीके आ जानेपर साधुका स्वयं वहाँसे दूर हटकर उस प्राणीकी रक्षा करना उत्कृष्ट अपहृत संयम है । कोमल पीछी वगैरहसे उस प्राणीको वहाँसे हटाना मध्यम अपहृत संयम है और किसी दूसरे उपकरणसे उस प्राणीको वहाँसे दूर करना जघन्य अपहृत संयम है।
२९७. प्र०-आठशुद्धियाँ कौन-सी हैं ?
उ०-इस अपहृत संयमके लिए आठ शुद्धियां बतलाई गई हैं। वे इस प्रकार हैं-भावशुद्धि, कायशुद्धि, विनयशुद्धि, ईर्यापथशुद्धि, भिक्षाशुद्धि, प्रतिष्ठापनशुद्धि, शयनासनशुद्धि और वाक्यशुद्धि ।
२९८. प्र०-भावशुद्धि किसे कहते हैं ?
उ.-कर्मोके क्षयोपशमसे होनेवाली और मोक्षमार्गमें रुचि होनेसे उज्ज्वल तथा रागादिसे रहित विशुद्ध परिणामोंके होनेको भावशुद्धि कहते हैं।
२९९. प्र०-कायशुद्धि किसे कहते हैं ?
उ०- शरीरका वस्त्र-आभूषण, स्नान-विलेपन, अंग विकार आदिसे रहित होना तथा ऐसा प्रशान्त होना मानों मूर्तिमान् प्रशम गुण ही है, इसे कायशुद्धि कहते हैं।
३००. प्र०-विनयशुद्धि किसे कहते हैं ? ___ उ०-अर्हन्त आदि पूज्य गुरुओंकी यथायोग्य पूजामें तत्पर होना, ज्ञानादि की विधिपूर्वक भक्ति करना और समस्त कार्यों में गुरुके अनुकूल बरतना विनयशुद्धि है।
३०१. प्र०-ईर्यापथशुद्धि किसे कहते हैं ? ___ उ०-अन्तरंग ज्ञान और सूर्य तथा इन्द्रियके प्रकाशके द्वारा देखी हुई जमोनमें प्राणियोंको पीड़ा न पहुंचाते हुए सामने देखकर गमन करना ईपिथ शुद्धि है। ___ ३०२. प्र०-भिक्षाशुद्धि किसे कहते हैं ?
उ०-आचारशास्त्रमें भिक्षाका जो देश और काल कहा है उसको जानने वाले मुनिका भोजनके लाभ और अलाभमें तथा सरस और विरस भोजनमें समान भाव रखकर भिक्षाके लिए जाना और दीनता न दिखाते हुए विधिपूर्वक प्रासुक आहार ग्रहण करना भिक्षाशुद्धि है।
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