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चरणानुयोग-प्रवेशिका
उ०- भोजन में अमुक वस्तु स्वादिष्ट नहीं है इस प्रकार निन्दाभावसे भोजन करना धूम दोष है ।
२८२. प्र० - संयोजना दोष किसे कहते हैं ?
उ०—परस्परमें विरुद्ध वस्तुओंको मिलाकर भोजन करना, जैसे गर्ममें ठंढा और ठंढेमें गर्म मिलाना, रूखेमें चिकना और चिकनेमें रूखा मिलाना अथवा वैद्यक शास्त्रके विरुद्ध मिश्रण करके भोजन करना संयोजना नामका दोष है ।
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२८३. प्र० – अतिमात्र दोष किसे कहते हैं ?
उ०- उदर के चार भाग करके दो भाग अन्नसे और एक भाग जलसे भरना चाहिये तथा एक भाग खाली रखना चाहिये । इस प्रमाणका उल्लंघन करके भरपेट भोजन करना अतिमात्र दोष है ।
२८४. प्र० - साधुके भोजनके अन्तराय कौनसे हैं ?
उ०- - आहारके लिये जाते हुए या खड़े हुए मुनिके ऊपर यदि कौवा वगैरह बीट कर दे, अपवित्र वस्तु पैर में लग जाये, अपनेको वमन हो जाये, कोई टोक
आहार मत करो, अपने या दूसरेके शरीर से बहते हुए रक्त पीप वगैरहको देख ले, दुःखसे अपने या अपने निकटवर्ती जनोंकी आँखोंमें आँसू आ जाये, सिद्ध भक्ति करनेके पश्चात् यदि हाथसे घुटनेसे नीचेका भाग छुआ जाये, तिरछे पड़े हुए घुटने प्रमाण लकड़ी पत्थर वगैरहको यदि लाँघकर जाना पड़े, अपनी नाभिसे नीचे तक सिर झुकाकर यदि निकलना पड़े, यदि त्यागी हुई वस्तु खाने में आ जाये, यदि अपने आगे कोई किसी पञ्चेन्द्रिय जीवका वध करता हो, भोजन करते हुए साधुके हाथमेंसे यदि कौवा गिद्ध वगैरह भोजन ले जाय, या ग्रास नीचे गिर जाये, या हाथमें कोई जीव आकर मर जाये, भोजन करते समय मांस मद्य आदिका दर्शन हो जाये, या साधुपर कोई उपसर्ग हो जाये, या दोनों पैरोंके बीच में से कोई पञ्चेन्द्रिय जीव निकल जाये, या दाताके हाथमेंसे पात्र वगैरह नीचे गिर जाये, या साधुको मल-मूत्रका त्याग हो जाये, भिक्षा के लिये भ्रमण करते हुए यदि साधु चाण्डाल वगैरहके घरमें चला जाये, यदि मूर्छा वगैरह के कारण साधु गिर जाये, यदि साधु जमीनपर बैठ जाये, यदि साधुको कुत्ता वगैरह काट ले, सिद्ध भक्ति करनेके पश्चात् साधु यदि हाथसे भूमिको छू ले, या नाक थूक आदि करे, यदि साधुके पेट से कृमि निकले, यदि साधु अदत्त भोजनको ग्रहण करले, यदि साधु या उसके निकटवर्तीपर कोई भाले वगैरहसे प्रहार करे, साधु जिस ग्राम में ठहरा हो उस गाँव में यदि आग लग जाये और यदि साधु जमीनपर पड़े हुए रत्न वगैरहको हाथसे या पैरसे
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