________________
चरणानुयोग-प्रवेशिका भोजन करना और जो न रुचे उसे छोड़कर जो रुचे उसे खाना, ये पाँच प्रकार का छोटित दोष है।
२७५. प्र०-अपरिणत दोष किसे कहते हैं ?
उ०-हाड़के चूर्ण वगैरहके द्वारा जिस जलका रूप, रस और गन्ध बदल न गया हो उसे अपरिणत दोष कहते हैं। ऐसा जल मुनियोंको नहीं लेना चाहिये ।
२७६. प्र०-साधारण अथवा संव्यवहरण दोष किसे कहते हैं ? ..
उ.-दान देनेके लिये जल्दीमें पात्र आदिको घसीटकर बिना बिचारे जो भोजन दिया गया हो, उसका ग्रहण करना साधारण अथवा संव्यवहरण नामका दोष है।
२७७. प्र०-दायक दोष किसे कहते हैं ?
उ०-दान देनेवालेके आश्रयसे जो दोष होता है उसे दायक दोष कहते हैं। जो बाल सँवारती हो, शराब पिये हो, भूत-प्रेतसे आविष्ट हो, मल-मूत्र करके आई हो, केवल एक वस्त्र पहने हो, जिसके शरीर में खून लगा हो, जो आर्यिका हो, वमन करके आई हो, तेल मलवाकर आई हो, कुछ खा-पी रही हो, बैठी हुई हो, नीचे अथवा ऊँचे स्थानपर बैठो हो, दीवार वगैरहकी ओटमें हो, अति बाला या अति वृद्धा हो, भिणो हो, रजस्वला हो, रोगी हो, अन्धी हो, मुखसे या पंखे वगैरहसे आग फूंकती हो, चूल्हेमें लकड़ी सरकाती हो, आगको ढांक रही हो, आगको बुझाती हो, आगको इधर-उधर कर रही हो, मकान लीपती हो, स्नान वगैरह करती हो, स्तन पान करते हुए बालकको स्तन छुड़ाकर आई हो, जिसके यहाँ मृतकका सूतक लगा हो, जो नपुंसक हो, ऐसे स्त्री अथवा पुरुषके द्वारा दिया हुआ भोजन साधुको नहीं लेना चाहिये। __२७८. प्र०-लिप्त दोष किसे कहते हैं ?
उ०-गेरु, हरताल, पिष्टिका, शाक और अप्रासुक जलसे सने हुए हाथ या बरतनसे भोजन देना लिप्त नामका दोष है।
२७९. प्र०-मिश्र दोष किसे कहते हैं ?
उ०-सचित्त मिट्टी, सचित्त जल, सचित्त पत्र पुष्प फल वगैरह, जौ गेहूँ वगैरह बीज तथा जीवित त्रस जीवोंसे मिला हुआ भोजन अर्थात् जिस भोजनमें सचित्त वस्तुका सम्मिश्रण हो वह मिश्र नामके महान् दोषसे दूषित है।
२८०. प्र०-अंगारक दोष किसे कहते हैं ?
उ.-'भोजनमें अमुक वस्तु बड़ी स्वादिष्ट है वह और भी खानेको मिले तो बहुत अच्छा हो' इस प्रकारकी अतिलम्पटतासे भोजन करना अंगारक दोष है।
२८१. प्र०-धूम दोष किसे कहते हैं ? .
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org