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चरणानुयोग-प्रवेशिका
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उ०- किसीको विद्या प्रदान करनेकी आशा दिलाकर आहार प्राप्त करना अथवा विद्या द्वारा प्राप्त आहार ग्रहण करना विद्या दोष है ।
२६६. प्र०. -मन्त्र दोष किसे कहते हैं ?
उ०- सर्प आदिका विष हरनेवाले मन्त्र के जोरसे प्राप्त आहारको ग्रहण करना मन्त्र दोष है ।
२६७. प्र०- - चूर्ण दोष किसे कहते हैं ?
उ० – शरीरके लिये उबटन और आँखोंके लिये अंजन आदि देकर आहार प्राप्त करना चूर्णदोष है |
२६८. प्र० - मूलकर्म दोष किसे कहते हैं ?
उ०- जो किसीके वशमें न हो उसे उसके वशमें करके और वियुक्त हुए स्त्री पुरुषोंका परस्परमें मेल कराकर आहार प्राप्त करना मूलकर्म दोष है । ये १६ उत्पादन दोष हैं ।
२६९. प्र० - दस अशन दोष कौनसे हैं ?
उ०
- शंकित, पिहित, प्रक्षित, निक्षिप्त, छोटित, अपरिणत, साधारण, दायक, लिप्त और मिश्र ये दस अशन दोष हैं ।
२७०. प्र० - शंकित दोष किसे कहते हैं ?
उ०- यह भोज्य वस्तु खाने-पीने के योग्य है अथवा नहीं है इसप्रकार की शंक होते हुए भी उसे खा लेना शंकित दोष है ।
२७१. प्र० - पिहित दोष किसे कहते हैं ?
उ०- जो भोजन-पान सचित्त द्रव्यसे अथवा भारी अचित्त द्रव्यसे ढका हुआ हो और उसके आवरणको हटाकर मुनिको दिया जाये तो पिहित नामका अशन दोष है ।
२७२. प्र० - प्रक्षित दोष किसे कहते हैं ?
उ० -घी तेल आदिसे लिप्त हाथ, बरतन अथवा कछूके द्वारा दिया हुआ भोजन ग्रहण करने से म्रक्षित नामका अशन दोष होता है ।
२७३. प्र० - निक्षिप्त दोष किसे कहते हैं ?
उ०- सचित्त पृथिवी, सचित्त जल, सचित्त अग्नि, हरित काय, उगने की शक्ति से युक्त गेहूँ वगैरह बीज द्रव्य और दो इन्द्रिय आदि त्रस जीवोंके ऊपर रखा हुआ आहार निक्षिप्त दोष से दूषित है ।
२७४. प्र० - छोटित दोष किसे कहते हैं ?
उ०- भोज कराते समय बहुत-सा अन्न नीचे गिराना अथवा परोसते समय मठा दूध आदिका नीचे टपकना अथवा मुनिका छिद्र सहित हाथोंसे मठा आदिको नीचे गिराते हुए भोजन करना अथवा हथेलियोंको अलग करके
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