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चरणानुयोग- प्रवेशिका
खिलाना, दूध पिलाना और सुलाना । इन पांच कर्मोंका उपदेश देने से प्राप्त आहारको यदि साधु ग्रहण करता है तो वह धात्री दोष है । २५७. प्र० -- दूत नामक दोष किसे कहते हैं ?
उ०- किसी साधुको जाता हुआ देखकर किसी गृहस्थने कहा - महाराज ! उस गांव में मेरे सम्बन्धी रहते हैं उनसे मेरा सन्देश कह देना । वह साधु उस गांव में पहुँचकर उस गृहस्थके सम्बन्धी से उसका सन्देश कह देता है । वह सम्बन्धी यदि इससे सन्तुष्ट होकर साधुको दान देता है और साधु उस दानको ले लेता है तो यह दूत नामक दोष है ।
२५८. प्र० - निमित्त दोष किसे कहते हैं ?
उ०- किसीके शारीरिक चिह्नों आदिको देखकर और उनका शुभाशुभ फल बतलाकर प्राप्त हुए आहारको यदि साधु ग्रहण करता है तो यह निमित्त दोष है ।
२५९. प्र० - वनीपक दोष किसे कहते हैं ?
उ०- दाताके अनुकूल बोलनेसे प्राप्त हुए आहारको यदि साधु ग्रहण करता है तो यह वनीपक नामका दोष है ।
२६० प्र० - आजीव दोष किसे कहते हैं ?
उ०- अपने कुल, जाति, ऐश्वयं, तप वगैरहका वर्णन करनेसे प्राप्त हुए आहारको ग्रहण करना आजीव दोष है ।
- क्रोध, मान, माया और लोभ दोषका क्या स्वरूप है ? उ०- क्रोध करके आहार प्राप्त करना क्रोध दोष है । मान करके आहार प्राप्त करना मान दोष है । माया करके आहार प्राप्त करना माया दोष है और लोभ बतलाकर आहार प्राप्त करना लोभ दोष है ।
२६१. प्र०
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२६२. प्र० - पूर्वस्तवन दोष किसे कहते हैं ?
उ०- दाताकी प्रशंसा करनेसे अथवा उसे दानका स्मरण दिलाकर 'कि पहले तो तुम खूब दान देते थे अब क्यों भूल गये' इत्यादि कहकर आहार प्राप्त करना पूर्वस्तुति दोष है ।
२६३. प्र० - पश्चात् स्तवन दोष किसे कहते हैं ?
उ०- आहार ग्रहण करनेके बाद दाताकी प्रशंसा करना पश्चात् स्तवन नामका दोष है ।
२६४. प्र० - चिकित्सा दोष किसे कहते हैं ?
उ०- किसीके रोगकी चिकित्सा ( इलाज ) करके आहार प्राप्त करना चिकित्सा दोष है ।
२६५. प्र० - विद्या दोष किसे कहते हैं ?
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