SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका १६०. प्र०-तब द्रलिंगकी क्या आवश्यकता है ? : उ०-द्रव्यलिंग भावलिंगका सूचक है। जिसके मनमें तिलतुषमात्र भी परिग्रहकी भावना नहीं है ऐसा आत्मदर्शी साधु लंगोटीकी भी परवाह नहीं कर सकता। १६१. प्र०-श्रमण अथवा जनसाधुके मूलगुण कितने हैं ? . ___उ०--जैन साधुके २८ मूल गुण होते हैं-पांच महाव्रत, पांच समिति, पांच इन्द्रियोंका निरोध, छै आवश्यक, केशलोंच, नग्नता, स्नान न करना, भूमि पर शयन, दातोन नहीं करना, खड़े होकर भोजन करना और एक बार भोजन करना। १६२. प्र०-पांच महावत कौनसे हैं ? उ०-अहिंसा महावत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महात्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत और परिग्रहत्याग महाव्रत ये पांच महाव्रत हैं। १६३. प्र०-पांच महाव्रतोंका क्या स्वरूप है ? ___ उ०-छै कायके जीवोंकी रक्षा करना और रागद्वेष मोहको मनसे हटाना अहिसा महाव्रत है। कभी थोड़ा-सा भी झूठ न बोलना सत्य महावत है। बिना दिया जल, मिट्टी और तृणतक नहीं लेना अचौर्य महावत है । शोलके अठारह हजार भेदोंका पालन करते हुए स्त्रीमात्रका त्याग करना और सदा अपने आत्मामें हो लीन रहना ब्रह्मचर्य महाव्रत है। चौदह प्रकारके अन्तरंग और बारह प्रकारके बाह्यपरिग्रहसे सर्वथा रहित होना परिग्रह त्याग महाव्रत है। १६४. प्र०-समिति किसे कहते हैं ? उ.-'प्राणियोंको पोड़ा न पहुँचे' इस भावनासे देख-भाल कर प्रवृत्ति करनेको समिति कहते हैं। १६५. प्र०-पांच समितियां कौन-सी हैं ? उ-ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति, उत्सर्गसमिति ये पाँच समितियाँ हैं ? १६६. प्र-ईर्यासमिति किसे कहते हैं ? ___उ०—मनुष्य, गाड़ो, घोड़ा वगैरहके चलनेसे मथे हुए और सूर्यके प्रकाशसे प्रकाशित मार्ग पर दयाभावसे प्राणियोंको रक्षा करनेके लिये आगे चार हाथ जमोन देखकर धोरे-धोरे चलना ईर्यासमिति है। १६७. प्र०--भाषासमिति किसे कहते हैं ? उ०-दस प्रकारको दुर्भाषाओंको छोड़कर हितमित और संशयमें न डालनेवाले वचन बोलना भाषासमिति है। १६८.प्र०-दस प्रकारको दुर्भाषाएँ कौन-सी हैं ? । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003834
Book TitleCharnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy